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से आवश्यक और अनिवार्य हिंसा होने के कारण यह महारंभ की कोटि में समाविष्ट नहीं होती।
मैं देख रहा हूं, आज सट्टा बहुत चलता है। लोग शायद समझते हैं कि वह हिंसा से परे है, पर वास्तविकता यह है कि यह सामान्य हिंसा की कोटि में नहीं, बल्कि महारंभ की कोटि में आता है। क्यों ? इसलिए कि उसमे मानसिक विकृति, भावों की क्रूरता, अध्यवसाय की मलिनता
आदि बातें प्रचुर मात्रा में रहती हैं। हिंसा की परिभाषा
प्रासंगिक तौर पर जैन-दर्शन का हिंसा का सिद्धांत भी संक्षेप में स्पष्ट कर देना चाहता हूं। हिंसा का संबंध मात्र जीव के मरने से नहीं है। कभी-कभी जीव की मृत्यु हो जाने पर भी हिंसा नहीं होती। यह इसलिए कि वहां मन, वचन और काया की कोई दुष्प्रवृत्ति नहीं है। मूलतः हिंसा का संबंध व्यक्ति की अपनी दुष्प्रवृत्ति से है। जीव का मरना तो उसका एक स्थूल परिणाम है। यदि व्यक्ति दुष्प्रवृत्त नहीं है तो कदाचित जीव के मरने के बावजूद वह हिंसा के पाप का भागीदार नहीं है। इसके विपरीत यदि वह मन, वचन या काया-किसी स्तर पर दुष्प्रवृत्त है तो जीव के न मरने के बावजूद हिंसा के पाप से नहीं बच सकता। इसलिए हिंसा-अहिंसा के संदर्भ में लोगों को अपनी अवधारणा सम्यक बनानी चाहिए। शोषण महारंभ है ___कुछ लोगों की ऐसी धारणा है कि कपड़ा, जूट आदि के व्यवसाय में हिंसा नहीं है, पर यह धरणा भी सम्यक नहीं है। इनके व्यापरव्यवसाय और उद्योग में भी हिंसा निहित है और विशेष परिस्थितियों में ये महारंभ की कोटि में भी आ जाते हैं । इसी प्रकार श्रमिकों से दबावपूर्वक अधिक काम लेना या अन्य रूपों में उनका शोषण करना भी महारंभ है। ऐसी प्रवृत्तियों से सलक्ष्य बचा जाना चाहिए। . कारखानों में होनेवाली हिंसा को एकांततः महारंभ कहना तो थोड़ा कठिन है, पर इतना सुनिश्चित है कि उनके चलाने में होनेवाली वैचारिक या अन्य किसी प्रकार की क्रूरता महारंभ है। यद्यपि आज का चिंतन प्रवाह कल-कारखानों के पक्ष में है, उन्हें आर्थिक प्रगति एवं राष्ट्र के अभ्युदय के लिए आवश्यक मान लिया गया है, तथापि इतना तो स्पष्ट
महारंभ और महापरिग्रह से बचें
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