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________________ ८० : महारंभ और महापरिग्रह से बचें नरक-आयुष्य-बंधन के चार कारण आयुष्य के चार प्रकार हैं-नरकायुष्य, तिर्यंचायुष्य, मनुष्यायुष्य और देवायुष्य। चारों ही प्रकार के आयुष्य के बंधन के अलग-अलग कारण बताए गए हैं। संक्षेप में नरकायुष्य-बंधन का कारण क्रूरतापूर्ण व्यवहार है। कुछ विस्तार में कहा जाए तो चार कारण हैं-१. महारंभ २. महापरिग्रह ३. पंचेंद्रिय-वध ४. मांसाहार। महारंभ उस बड़ी हिंसा को कहते हैं, जो क्रूरतापूर्ण हो और सतत चलती हो। यों तो गार्हस्थ्य जीवन की कुछ ऐसी स्थितियां हैं, जिनके कारण व्यक्ति हिंसा से सार्वथा विरत नहीं हो सकता। वहां एक सीमा तक हिंसा अनिवार्य है। उस अनिवार्य हिंसा की बात हम छोड़ें, पर हिंसा से जुड़ी बहुत-सी ऐसी प्रवृत्तियां भी हैं, जो आवश्यक और परिहार्य होने के बावजूद की जाती हैं। उनमें से कुछ प्रवृत्तियां क्रूरतापूर्ण होती हैं। उनके करने के पीछे व्यक्ति की स्वार्थवृत्ति, महत्वाकांक्षा, अर्थलिप्सा आदि तत्त्व काम करते हैं। इनमें होनेवाली हिंसा महारंभ है। अतः प्रत्येक सद्गृहस्थ को क्रूरतापूर्ण हिंसा से बचने के प्रति जागरूक रहना चाहिए, अन्यथा नरकायु-बंध की संभावना नहीं टाली जा सकती। कृषि और जैन कुछ लोगों की ऐसी अवधारणा है कि हिंसा के भय से जैन लोग कृषि नहीं करते। मेरी समझ में यह अवधारणा यथार्थपरक नहीं है। कटु सचाई यह है कि कृषि में होनेवाले कठिन श्रम से बचने की मनोवृत्ति एवं आरामतलबी के कारण वे इसे छोड़कर लगभग पूरी तरह व्यापारव्यवसाय में लग गए हैं। प्राचीन समय में जैन लोग कृषि से जुड़े हुए थे। आज भी कुछ-कुछ जैन कृषि करते हैं। यद्यपि कृषि में एकेंद्रिय से लेकर पंचेंद्रिय तक के जीवों की हिंसा होती है, तथापि सैद्धांतिक दृष्टि - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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