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वातावरण बनाने के लिए अणुव्रत-विचार-परिषद, अहिंसा-दिवस, अणुव्रतशिविर आदि अनेक प्रवृत्तियां देश के विभिन्न भागों में चलती रही हैं और चल रही हैं। देश के आम चुनावों में लोग नैतिकता न खोएं, इस दिशा में भी चुनावों के प्रसंग पर एक प्रभावशाली कार्यक्रम चलाया गया था। अणुव्रत-आंदोलन के अंतर्गत मैत्री-दिवस का कार्यक्रम अंतरदेशीय क्षेत्र में चलनेवाले शीत-युद्धों व तनाव कम करने की दिशा में एक सात्त्विक चरणविन्यास है।
यूनेस्को (U.N.E.S.C.O.) के डाइरेक्टर जनरल डॉ. लूथर इवेन्स और अनेक देशों के राजदूत इस कार्यक्रम में रस ले रहे हैं और वे इसे विश्व-मैत्री-दिवस के रूप में देखना चाहते हैं। इस प्रकार यह एक प्रगतिशील आंदोलन है। इसमें नाना प्रवृत्तियों के रूप में अभिनव उन्मेष सदा ही होते रहे हैं और हो रहे हैं।
बंग प्रदेश में अणुव्रत-आंदोलन का यह प्रथम वर्ष है। कलकत्ता पहुंचने में मेरे सामने यह आकर्षण तो था ही कि अणुव्रतों का पावन संदेश बंगवासियों के कानों तक पहुंचे, पर इससे भी अधिक बड़ा एक आकर्षण बंगीय संस्कृति का साक्षात्कार करना भी रहा है। इस संस्कृति में त्याग, संयम-साधना व धर्म के प्रति सदा से आदर रहा है और मुझे वह आज भी सुरक्षित लग रहा है। जब बंगाली भाई मुझसे मिलते हैं, तब उनका सौजन्य, साधु-प्रेम, सहज श्रद्धा आदि गुण मानो मूर्त हो उठते हैं। किसी युग में जैन-धर्म बंगवासियों का अपना धर्म रहा है, यह . इतिहास बताता है। बहुत संभव है कि बंगाल भगवान महावीर की विहारभूमि भी रहा हो।
लगभग पौने तीन माह से हम यहां अपना कार्यक्रम चला रहे हैं। इस अवधि में मैंने अनभव किया है कि यहां के लोगों के मन में अणुव्रत की बात सुनने की तीव्र उत्सुकता है, जिज्ञासा का भाव है। पत्रकारों, साहित्यकारों तथा अन्य लोगों का भी आंदोलन को समुचित सहयोग मिल रहा है। इस वर्ष का चातुर्मासिक प्रवास हमने यहीं करने का निर्णय कर लिया है। इस अवधि में व्यापारियों, विद्यार्थियों, राज्यकर्मचारियों, विधायकों आदि सभी वर्गों के लोगों में तथा अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों में योजनाबद्ध ढंग से नैतिक जाग्रतिमूलक इस अणुव्रत कार्यक्रम को चलाने का निश्चय किया गया है।
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ज्योति जले : मुक्ति मिले
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