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________________ उपदेश और हृदय-परिवर्तन __ अणुव्रत-आंदोलन हृदय-परिवर्तन का मार्ग है। वह व्यक्ति-सुधार से समष्टि-सुधार की दिशा में आगे बढ़ता है। कोई कह सकता है कि ऐसे उपदेशात्मक आंदोलन से क्या होने का है, भगवान महावीर और गौतम बुद्ध ने भी तो ऐसे अभियान चलाए थे, पर उनसे क्या हुआ। संसार तो उनके बाद भी ज्यों-का-त्यों रहा। मैं मानता हूं, यह निराशा का स्वर है। भगवान महावीर और बुद्ध के प्रयत्नों से कुछ भी नहीं हुआ, ऐसा सोचना अनुचित है। यथार्थ यह है कि उनके प्रयत्नों से उस समय हिंसा के रौद्र दावालन में झुलसते समाज को एक अलौकिक शांति मिली थी। दासत्व-जैसी दुष्प्रथाओं से वह मुक्त बना था, यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। कोई पूछ सकता है, मनुष्य के द्वंद्व समाप्त क्यों नहीं हो पाए। मैं मानता हूं कि यह प्रश्न चिंतन का अतिरेक है। आज भी अणुव्रत या अन्य कोई प्रयत्न मनुष्यमात्र को सर्वथा समस्यामुक्त कर देगा, फिर उसके सामने एक भी द्वंद्व नहीं रहेगा यह अतिकल्पना है। समाज क्रमिक विकास से ही आगे बढ़ता आ रहा है। आज की क्रांति आनेवाले समाज के लिए सुधार ही प्रमाणित होती है। ___ हृदय-परिवर्तन की बात को भी बहुत बार लोग साधारण कहकर टाल देते हैं, पर अंतिम सचाई यह है कि किसी निर्माण का पूर्ण रूप हृदय-परिवर्तन ही है। विचारों का परिवर्तन ही क्रियात्मक परिवर्तन बनता है। कुछ लोग इसे परिवर्तन और निर्माण का एक शिथिल प्रकार मानते हैं, पर बदलाव का इससे भिन्न कोई दूसरा मानवोचित प्रकार है भी तो नहीं। विज्ञान द्वारा भी अब तक कोई ऐसा यंत्र आविष्कृत नहीं हुआ है, जिसे छूते ही मनुष्य का हृदय बदल जाए और चोर या डाकू भला मनुष्य बन जाए, जबकि भगवान महावीर व गौतम बुद्ध आदि महापुरुष अपने उपदेशों से ऐसे लोगों का भी हृदय-परिवर्तन करने में सफल हुए हैं। अणुव्रत-आंदोलन विचार-निर्माण का आंदोलन है। वह मनुष्य के संस्कारों में से शोषण, संग्रह आदि दोष मिटाकर एक उदार मानवीय प्रभावना का संचार करता है। अणुव्रत-भावना से प्रेरित लोग शोषण, संग्रह आदि से मुक्त रहकर भले जिस-किसी व्यवसाय में क्यों न जाएं. वह उनकी रचनात्मक प्रवृत्ति हो जाएगी। नई समाज-रचना का सूत्रपात .१८८ ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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