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७९ : आध्यात्मिक व नैतिक विकास ही वास्तविक
विज्ञान है*
मनुष्य चिंतनशील व अनुभूतिप्रधान प्राणी है। रोटी, कपड़ा व पार्थिव भोग-सामग्री ही उसकी अंतिम मंजिल नहीं है। इन सबके परे उसके मन की भी कोई खुराक है और वह है-अध्यात्म। उसके बिना वह जी नहीं सकता, उसका चैतन्य मूर्छित होने लगता है। पार्थिव सुखप्रसाधनों के ढेर में भी ग्लानि व दैन्य उसे कचोटने लगता है। उस भौतिक समृद्धि के शिखर से वह आध्यात्मिक उन्नयन की राह पकड़ता है। ऐसी स्थिति में ही तो भगवान महावीर ने कहा था-'ज्ञानी होने का सार है कि वह किसी की हिंसा न करे।' वस्तुतः अहिंसा धर्म का सारभूत तत्त्व है। अध्यात्म-जाग्रति के बिना अहिंसा, मैत्री, विश्वबंधुत्व व आत्मवत् सर्वभूतेषु की भावना का आविर्भाव नहीं हो सकता। भौतिक विज्ञान भौतिक सुख-सुविधा के साधनों का ढेर लगा सकता है, पर वह मानव-मन में संतोष व संयम नहीं जगा सकता; और संयम व संतोष के बिना मनुष्य सुख व शांति प्राप्त नहीं कर सकता। भौतिक विज्ञान चंद्रलोक की दूरी तय कर सकता हो, पर वह राष्ट्र-राष्ट्र, समाज-समाज, पड़ोसी-पड़ोसी में जो मनोदूरी है, विचारों की दूरी है, उसे तय नहीं कर सकता। ऐसा इसलिए कि मनुष्य का आध्यात्मिक व नैतिक विकास ही वास्तविक विज्ञान है।
अणुव्रत-आंदोलन अहिंसा, सत्य आदि आध्यात्मिक तत्त्वों के आधार पर सुषुप्त मानव को जाग्रत करने का एक उपक्रम है। वह काले और गोरों में, हरिजनों और महाजनों में, किसानों और जमींदारों में, मजदूरों और पूंजीपतियों में समानता, सौहार्द व निद्वंद्व की स्थिति देखना चाहता है; और यह कार्य मनुष्य के नैतिक व आध्यात्मिक उन्नयन से ही संभव है।
पत्रकार सम्मेलन में प्रदत्त वक्तव्य। आध्यात्मिक व नैतिक विकास ही वास्तविक विज्ञान है
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