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५४. विद्यार्थी-काल : जीवन-निर्माण की स्वर्णिम वेला ५५. संतों के स्वागत की स्वस्थ विधा ५६. छात्राएं समाज की भावी निर्मात्रियां हैं ५७. मैत्री-दिवस : अभिप्रेत और स्वरूप ५८. मैत्री : आधार और स्वरूप ५९. सच्चा सुख क्या है ६०. वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में साहित्यकारों का दायित्व ६१. साधना की तेजस्विता ६२. धार्मिक और लौकिक विनय का महत्त्व ६३. अणुव्रत : अध्यात्म-पक्ष को सुदृढ़ बनाने का आंदोलन ६४. जैन-दर्शन में कर्म ६५. ज्ञानावरणीय कर्म के पांच भेद ६६. आचरण-शुद्धि के धरातल पर धार्मिक बनें ६७. शांति और सुख का आधार ६८. अणुव्रत आंदोलन आत्म-सुधार का आंदोलन है ६९. लोभ : सबसे बड़ा खतरा है ७०. लोभ के चार प्रकार ७१. अहिंसा की व्यापकता ७२. श्रद्धा, ज्ञान और सदाचार का समवाय ही मोक्ष-पथ है ७३. साधना-पथ ७४. संवर : मुक्ति का मार्ग ७५. ज्ञेय नव ही तत्त्व हैं ७६. उपासक : उपासना : उपास्य ७७. भय, शोक और जुगुप्सा से बचें ७८. व्यावहारिक जीवन में धर्म का प्रयोग ७९. आध्यात्मिक व नैतिक विकास ही वास्तविक विज्ञान है ८०. महारंभ और महापरिग्रह से बचें ८१. वंचनापूर्ण व्यवहार से बचें ८२. देवायुष्य बंधन के कारण ८३. नैतिक दुर्भिक्ष कैसे मिटे
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