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________________ २४. छात्र-छात्राओं की जीवन-दिशा २५. धार्मिक शिक्षा का महत्त्व २६. घर का वातावरण स्वस्थ बनाएं २७. धर्म का सार्वजनिक रूप प्रकट हो २८. मोक्ष पुरुषार्थसाध्य है २९. वर्धमान महावीर के उपदेशों की व्यापकता ३०. धार्मिक कौन ३१. कर्तव्य-पालन के प्रति सजग बनें ३२. अणुव्रत-आंदोलन का स्वरूप ३३. विद्याध्ययन क्यों ३४. राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो ३५. आर्य कौन ३६. शांति और सुख का मार्ग ३७. धर्म के दो रूप ३८. मुक्ति का मार्ग ३९. आत्मा के तीन रूप ४०. अर्थ के प्रति सम्यक दृष्टिकोण बने ४१. शक्ति और सुख की दिशा ४२. संयम का वातावरण निर्मित हो ४३. पुरुषार्थ-चेतना जागे ४४. श्रेय का संग्रहण करें ४५. गुरु कैसा हो ४६. सभ्यता और संस्कृति ४७. कर्म-बंधन के प्रति सजग बनें ४८. व्यापारी सत्यनिष्ठ एवं प्रामाणिक बनें ४९. आचार जीवन की मूल पूंजी है ५०. अहिंसा प्राणिमात्र के लिए क्षेमंकरी है ५१. आशातना से बचें ५२. जैन-आगमों में भारतीय जीवन ५३. विरोध भी उपयोगी है १०२ १०४ १०६ १०८ ११० ११३ ११६ ११९ १२२ १२४ an १२६ १२८ an अठारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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