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व्यावहारिक जीवन में धर्म के प्रयोग का प्रश्न अनेक लोगों के द्वारा उठता रहता है। इसका भी कारण है। वह कारण यह कि जब-तब उसका प्रयोग कम हो जाता है या कभी-कभी धर्म के उपयोग और उसके फलित का श्रेय अन्यत्र जाने लगता है। आप यह बात समझें कि हम इस जीवन में जो कार्य करते हैं, वह जीवन-व्यवहार है तथा इस जीवन के बाद जोकुछ होगा, वह भी एक जीवन है। धर्म वर्तमान जीवन और आगामी जीवन दोनों के लिए उपयोगी और आवश्यक है। धर्म का व्यावहारिक उपयोग
। कुछ लोगों के मुंह से मैं इस आशय की शब्दावली सुनता हूं कि आज धर्म का जीवन-व्यवहार में कोई उपयोग नहीं है, क्योंकि उसके सहारे काम नहीं चल सकता। मेरी दृष्टि में यह चिंतन सही नहीं है। यदि कोई तत्त्व हमारे जीवन-व्यवहार के लिए काम का नहीं है, उपयोगी नहीं है तो इसका सीधा-सा अर्थ यह है कि वह हमारे लिए नहीं है, किंतु धर्म का तत्त्व यदि अतीत में हमारे काम का या उपयोग का तत्त्व रहा है तो वह वर्तमान में भी काम का तत्त्व है और भविष्य में भी काम का तत्त्व रहेगा। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, आर्जव, क्षांति, मुक्ति आदि तत्त्व धर्म के विभिन्न अंग हैं, विभिन्न रूप हैं। इनका मोक्षाराधना की दृष्टि से जितना उपयोग और महत्त्व है, उतना ही महत्त्व स्वस्थ जीवन-व्यवहार की दृष्टि से भी है। वैयक्तिक, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, राजनीतिक आदि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में, बल्कि युद्ध में भी इन सबका व्यावहारिक उपयोग बहुत स्पष्ट है। सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण प्रयोग ____ मैं मानता हूं कि कमी धर्म की प्रयोगात्मकता की नहीं, बल्कि प्रयोग करनेवालों की है। कहना चाहिए कि यह मानव-जीवन की एक ऐसी प्राकृतिक चिकित्सा है, जो आए हुए विकार तो दूर करती ही है, साथ ही उनके आने का जो कारण है, उसे भी मिटाकर भविष्य में भी उनसे त्राण दिलाती है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि धर्म को सही रूप में पहचानकर उसे जीवन-व्यवहार में अधिकाधिक स्थान दिया जाए। यह जितना अधिक जीवन-व्यवहार में उतरेगा, व्यक्ति के लिए उतनी ही अधिक श्रेयस्कर स्थिति निर्मित होगी। अणुव्रत-आंदोलन भी
व्यावहारिक जीवन में धर्म का प्रयोग
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