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________________ ७८ : व्यावहारिक जीवन में धर्म का प्रयोग धर्म एक ऐसा तत्त्व है, जो जीवन के सभी भागों में उपयोगी है। कहीं वह अवरोधक के रूप में उपयोगी बनता है तो कहीं उत्तेजक के रूप में। सत्प्रवृत्तियों या सत्कार्यों की प्रेरणा जगाने में वह उत्तेजक है तो दुष्प्रवृत्तियों/असत्कार्यों के लिए अवरोधक है। जीवन की परिभाषा धर्म का जीवन में उपयोग है, इसे समझने के लिए पहले यह समझना जरूरी है कि जीवन क्या है। यों जीवन सभी जीते हैं, पर जीवन की यथार्थ रूप में पहचान बहुत ही कम लोगों को होती है। क्या खानापीना और भोग-विलास ही जीवन है? क्या संसार में जीवित रहने की अवधि ही जीवन है ? क्या विभिन्न भौतिक तत्त्वों की प्राप्ति ही जीवन है? मेरी दृष्टि में इन सब बातों से धर्म का कोई संबंध नहीं है। फिर जीवन क्या है? संयम ही वास्तविक जीवन है। यानी व्यक्ति की संसार में मृत्युपर्यंत रहने की संपूर्ण कालावधि के अंतर्गत जो काल संयमसंवलित होता है, वही उसका यथार्थ जीवन है। धर्म किसके लिए प्रश्न किया जा सकता है कि धर्म किसके लिए है। इस संदर्भ में भगवान महावीर ने कहा है कि धर्म धार्मिकों के लिए भी है और अधार्मिकों के लिए भी। धार्मिकों के लिए तो इसलिए कि वे धर्म में स्थिर रहें तथा अधार्मिकों के लिए इसलिए कि वे अधर्माचरण से धर्माचरण की ओर मुड़ें। यदि अधार्मिकों के लिए वह उपयोग का तत्त्व न हो तो उसके सहारे उनका उद्धार कैसे संभव हो सकेगा? हम मानते हैं कि मिथ्यादृष्टि प्राणी सम्यग्दृष्टि भी बनता है। उसका सम्यक्त्व प्राप्त करना धर्म की प्रायोगिकता व उपयोगिता का ही द्योतक है। • १८४ - - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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