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________________ व्यक्ति सच्चा साधु होता है और वही उपास्य और श्रद्धेय हो सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है • न वि मुंडिएण समणो, न ओंकारेण बंभणो। न मुणी रणवासेणं, कुसचीरेण न तावसो॥ • समयाए समणो होइ, बंभचेरेण बंभणो। नाणेण य मुणी होइ, तवेणं होइ तावसो॥ - शिर मुंडाने मात्र से कोई श्रमण नहीं होता, ओंकार का जाप करने मात्र से कोई ब्राह्मण नहीं होता, अरण्यवास करने मात्र से कोई मुनि नहीं होता और कुस का वस्त्र धारण करने मात्र से कोई तापस नहीं होता। वास्तविक श्रमण वही है, जिसके मन में सुख-दुःख, लाभ-अलाभ, सम्मान-अपमान, निंदा-प्रशंसा, जीवन-मृत्यु, शीत-उष्ण आदि के प्रति समता का भाव हो। सच्चा ब्राह्मण वही है, जो ब्रह्मचर्य की आराधना करता हो। सच्चा मुनि वही है, जो ज्ञानाराधना-मनन करता हो और वास्तविक तपस्वी वही है, जो संयम-तप की साधना करता हो। पर लोगों में इसका विवेक कम देखने को मिलता है। उनका श्रद्धाप्रधान मानस गुणात्मकता की ओर कम जाता है और वे हर कोई को उपास्य और श्रद्धेय मान बैठते हैं, पर यह सुनिश्चित है कि गुणसंपन्न उपास्य की उपासना, उसके प्रति श्रद्धा-भाव ही उपासक के लिए कल्याण का हेतु बन सकता है। सुराना निवास सदर्न एवेन्यू, कलकत्ता २४ मई १९५९ उपासक : उपासना : उपास्य .१७९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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