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दवा की गोली में तीन, छ, तीस, दो सौ, हजार, दस हजार, लाख की दवा-शक्ति रहती है, उसी प्रकार एक शरीर में अनंत जीव रहते हैं।
निगोद के अतिरिक्त भी एक भिन्न अपेक्षा से एक शरीर में अनंत जीवों की विद्यमानता मानी गई है। द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्र आत्मा और वीर्य आत्मा-आत्मा के ये आठ प्रकार बताए गए हैं। द्रव्य आत्मा मूल आत्मा है। शेष उसके विभिन्न पर्याय हैं, गुण हैं। आत्मा के ये पर्याय या गुण सभी आत्मा है। इसी प्रकार आत्मा के अन्य जितने पर्याय और गुण हैं, उन्हें भी आत्मा जानना चाहिए। अपेक्षा है, इस विषय की विस्तृत जानकारी की जाए।
जीव की तरह अन्यान्य तत्त्वों के बारे में भी यथातथ्य ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान के आलोक में ही व्यक्ति सही पथ पर आगे बढ़ सकता है।
सुराना निवास बालीगंज, कलकत्ता २३ मई १९५९
ज्ञेय नव ही तत्त्व हैं
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