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तीसरा तत्त्व है-आचरण। एक अपेक्षा से सम्यक श्रद्धा और सम्यक ज्ञान की सही सार्थकता तभी प्रकट होती है, जब आचरण सही हो। वस्तुतः श्रद्धा, ज्ञान और आचरण (चरित्र) यह एक त्रिपदी है। गीता में इसे भक्ति, ज्ञान और कर्म के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस त्रिपदी में अखिल विश्व के समस्त उपादेय तत्त्वों का समावेश हो गया है। कुछ लोग इनमें से एक-एक पर बल देते हैं, पर मेरी दृष्टि में यह उचित नहीं है। इससे मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। सम्यक श्रद्धा, सम्यक ज्ञान
और सम्यक आचरण (चरित्र)-इन तीनों का समवाय ही मोक्ष-मार्ग है। इसलिए इन तीनों तत्त्वों की समुचित आराधना करनी चाहिए। इस आराधना-साधना में व्यक्ति जितना आगे बढ़ता है, उसका मोक्ष उतना ही निकट होता है।
श्री जैन श्वे. पार्श्वनाथ मंदिर (दादाबाड़ी) माणिकतल्ला, कलकत्ता १८ मई १९५९
श्रद्धा, ज्ञान और सदाचार का समवाय ही मोक्ष-पथ है
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