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________________ ७० : लोभ के चार प्रकार लोभ की चर्चा कल के प्रवचन में मैंने की थी। उसके चार प्रकार बताए गए हैं १. अनंतानुबंधी लोभ २. अप्रत्याख्यानी लोभ ३. प्रत्याख्यानी लोभ ४. संज्वलन लोभ। अनंतानुबंधी लोभ अत्यंत तीव्र लोभ को कहा जाता है। इसे कृमि रंग से उपमित किया गया है। जिस प्रकार कृमि रंग से रंगी गई रेशम के कपड़े का चिथड़ा-चिथड़ा हो जाने के पश्चात भी उसका वह रंग नहीं छूटता, उसी प्रकार अनंतानुबंधी लोभ मृत्यु के बाद भी नहीं मिट पाता। उसके परिणामस्वरूप व्यक्ति की अपने धन आदि के प्रति लालसा/ आसक्ति बनी रहती है। उसका जन्म सर्प-जैसी योनि में होता है। __ दूसरा प्रकार अप्रत्याख्यानी लोभ का है। यह अनंतानुबंधी लोभ जितना तीव्र तो नहीं होता, फिर भी काफी गहरा होता है। उसे कीचड़ के रंग से उपमित किया गया है। जिस प्रकार कीचड़ का रंग बड़ी मुश्किल और तीव्र प्रयत्न से ही छूटता है, उसी प्रकार अप्रत्याख्यानी लोभ भी काफी कठिनाई एवं सघन प्रयत्न से ही दूर होता है। अप्रत्याख्यानी लोभ से और हलका लोभ प्रत्याख्यानी है। उसे खंजन के रंग की उपमा दी गई है। जिस प्रकार खंजन का रंग सहजतया नहीं छूटता, थोड़ी कठिनाई से छूटता है, उसी प्रकार अप्रत्याख्यानी लोभ थोड़ी मुश्किल से ही छूट पाता है, बिलकुल सहजतया नहीं छूटता। संज्वलन लोभ सबसे हलका है। उसे हलदी के रंग की उपमा दी गई है। जिस प्रकार हलदी का रंग धूप लगते ही उड़ जाता है, उसी प्रकार संज्वलन लोभ भी कभी-कभार क्षणिक आता है और अपने आप मिट जाता है। अनंतानुबंधी क्रोध, मान और माया की तरह ही अनंतानुबंधी लोभ सम्यक का अवरोधक है। इसी क्रम में अप्रत्याख्यानी .१६६ - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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