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६८ : अणुव्रत-आंदोलन आत्म-सुधार का आंदोलन है
आज सर्वत्र लोग यह बात न केवल गंभीरता से अनुभव ही कर रहे हैं, बल्कि इसकी चर्चा भी कर रहे हैं कि राष्ट्र में सभी स्तरों पर नैतिक और चारित्रिक पतन हो रहा है। यह एक चिंतनीय स्थिति है। पर इससे भी गंभीर स्थिति यह है कि इस समस्या का कोई समुचित समाधान नहीं हो पा रहा है। राष्ट्र के विविधमुखी विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाओं का क्रम चल रहा है, पर मुझे बताने की जरूरत नहीं कि उनमें अब तक नैतिक व चारित्रिक ह्रास रोकने की कोई योजना नहीं बनी है। वैसे यह भी बहुत स्पष्ट है कि पंचवर्षीय योजनाओं से इस समस्या का कोई निराकरण संभव भी नहीं है। इसके लिए तो इस समस्या की तह तक पहुंचकर ही समाधान करना होगा। नैतिक और चारित्रिक पतन क्यों
कुछ लोगों का ऐसा चिंतन है कि नैतिक और चारित्रिक ह्रास का एकमात्र कारण अर्थाभाव है, किंतु मैं इससे सहमत नहीं हूं। मेरे चिंतन में अर्थाभाव नैतिक एवं चारित्रिक पतन का एक छोटा या साधारण कारण तो हो सकता है, पर उसे एकमात्र कारण नहीं कहा जा सकता। यह इसलिए कि अर्थसंपन्न राष्ट्रों में भी तो नैतिक और चारित्रिक पतन की यह समस्या मौजूद है। यदि अर्थाभाव इस स्थिति का एकमात्र कारण होता तो वहां यह समस्या कैसे होती? फिर एक बात और है। अमीर लोगों में नैतिक व चारित्रिक पतन की स्थिति ज्यादा गंभीर है। मेरी दृष्टि में भौतिकताप्रधान दृष्टिकोण, अध्यात्म एवं आध्यात्मिक मूल्यों के प्रति निष्ठा का अभाव तथा अर्थ-लिप्सा-ये तीनों नैतिक एवं चारित्रिक पतन के मुख्य कारण हैं। इनके साथ ही समाज में अर्थ को अतिरिक्त मूल्य मिलना, उसे बड़प्पन का मापदंड माना जाना तथा सामाजिक बंधनों का टूटना आदि भी इसके अन्य कारण हैं। इस तरह के कुछ और भी कारण हो सकते हैं, पर प्रमुख ये ही हैं। अतः आज इस बात की अत्यंत
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--- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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