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कैसे भी क्यों न पैदा हुई हो, उससे व्यक्ति को सहज शांति मिलती है, क्योंकि वह सहज रूप से स्वीकृत होती है। आसक्ति दुःख है
विरक्ति से बिलकुल विपरीत स्थिति है आसक्ति की। आप निश्चित माने कि संसार में जितनी अशांति है, दुःख है, उनके मूल में धन, वैभव
और भोग के प्रति व्यक्ति की आसक्ति ही है। यह आसक्ति या लिप्सा जितनी घनीभूत होती है, अशांति और दुःख भी उतना ही गहरा होता है। जैसे-जैसे व्यक्ति की आसक्ति कम होती जाती है, उसकी शांति और सुख की मात्रा बढ़ती जाती है तथा अशांति व दुःख कम होने लगता है। इसी लिए अणुव्रत-आंदोलन संयम और व्रत के माध्यम से भौतिक पदार्थों एवं भोग के प्रति आसक्ति व ममत्व कम करने की अभिप्रेरणा देता है। यह एक अनुभूत सचाई है कि संयम और व्रतमय जीवनशैली ही प्रशस्त जीवनशैली है। जूट बाजार से जुड़े उपस्थित व्यक्तियों को आह्वान करता हूं कि वे संयम और व्रत का यथार्थ मूल्यांकन करते हुए इन्हें अपने जीवन में स्थान दें। इससे न केवल उनके लिए कल्याण का पथ प्रशस्त होगा, समाज की स्वस्थता में भी वे हेतुभूत बनेंगे।
रेलवे गोदाम, काशीपुर रोड कलकत्ता ३ मई १९५९
शांति और सुख का आधार
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