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६७ : शांति और सुख का आधार
आत्मा की त्रैकालिक सत्ता
___ मोक्ष आस्तिक दर्शनों की चर्चा का एक महत्त्वपूर्ण विषय रहा है। मोक्ष को समझने के लिए आत्मा का अस्तित्व स्वीकार करना आवश्यक है। आत्मा शाश्वत है। यानी वह पहले भी थी, वर्तमान में भी है और भविष्य में भी सदा-सदा बनी रहेगी, भले उसका रूप कुछ भी हो। आज वह पशु की अवस्था में है, तो भविष्य में देवता की अवस्था को प्राप्त कर सकती है। आज जो मनुष्य की अवस्था में है, वह अतीत में कभी नारक भी रही होगी। आज जो आत्मा सांसारिक अवस्था में है, वह भविष्य में मोक्ष को भी उपलब्ध हो सकती है। तात्पर्य यह कि रूपांतरण होता रहा है, पर तत्त्वांतर कभी नहीं होता। फिर एक बात और समझने की है। जैन-दर्शन के अनुसार वह स्वयं जन्म-मृत्यु, सुख-दुःख आदि की कर्ता, भोक्ता और सभी प्रकार के बंधन तोड़नेवाली है। दूसरा मात्र निमित्त बन सकता है। इससे अधिक उसकी कोई भूमिका नहीं होती। मोक्ष-प्राप्ति का उपाय
प्रश्न पूछा जा सकता है कि मोक्ष की प्राप्ति का उपाय क्या है। मोक्ष या मुक्ति प्राप्त करने के लिए विरक्ति की आवश्यकता है, पर इस संदर्भ में एक बात ध्यान देने की है। विरक्ति कोई ऊपर से थोपे जाने का तत्त्व नहीं है। वह तो निमित्त मिलने से स्वतः और सहज रूप से उत्पन्न होती है। उदाहरणार्थ, अनेक लोगों को श्मशान में विरक्ति पैदा होती है। यह दूसरी बात है कि वह प्रायः क्षणिक होती है, स्थायी नहीं होती। इसी प्रकार कभी कोई व्यक्ति अपने विश्वस्त या अत्यंत आत्मीय व्यक्ति से धोखा खाता है, तब उसे विरक्ति हो जाती है। इस क्रम में अनेक निमित्तों की चर्चा की जा सकती है। भोग भोगने के बाद भी व्यक्ति को विरक्ति होती है। यहां समझने की बात यह है कि विरक्ति चाहे .१६०.
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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