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दृष्टिकोण का द्योतक है, वैचारिक कमजोरी की सूचना है। मेरा चिंतन है कि जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहां सत्य, ईमानदारी, प्रामाणिकता, नैतिकता आदि का बरताव न किया जा सके। व्यक्ति इस सचाई का स्मरण और अनुभव करता हुआ कि जीवन, शरीर, धन-वैभव आदि सभी भौतिक पदार्थ नश्वर हैं, अपने को सत्यनिष्ठ बनाए रखे। सत्यनिष्ठा धार्मिकता की पहचान है। सत्यनिष्ठ व्यक्ति सहजतया कभी कोई ऐसा आचरण और व्यवहार नहीं कर सकता, जिससे उसकी धार्मिकता प्रश्नचिह्नित हो। वह अपनी जीवन-शुद्धि बनाए रखने के प्रति जागरूक रहता है।
अणुव्रत-आंदोलन जीवन-शुद्धि का ही कार्यक्रम है। वह जाति, वर्ण, वर्ग, संप्रदाय आदि सभी प्रकार के भेदों से ऊपर उठकर मानव-मानव को सात्त्विक जीवन जीने की प्रेरणा देता है। उपासना, पूजा, पाठ, योग, जप, भजन, कीर्तन आदि को व्यक्ति की इच्छा पर छोड़ता हुआ उसे व्यवहार-शुद्धि के धरातल पर धार्मिक बनने का आह्वान करता है, मानव को मानवीय गुणों से संस्कारित करने का प्रयत्न करता है। वास्तविक परिवर्तन
गुणात्मक दृष्टि से देखें तो अणुव्रत-आंदोलन हृदय-परिवर्तन की प्रक्रिया है। मैं मानता हूं, हृदय-परिवर्तन से ही वास्तविक परिवर्तन संभावित है। हालांकि व्यवस्था परिवर्तन का भी अपना एक महत्त्व है, क्योंकि व्यक्ति के बदलाव में वह भी एक सीमा तक हेतुभूत बनता है, पर कोरे व्यवस्था-परिवर्तन से समस्या या बुराई जड़ से समाप्त नहीं होती, अपेक्षित सुधार नहीं होता। वास्तविक सुधार हृदय-परिवर्तन के स्तर पर व्यक्ति स्वयं कर सकता है। आप देखें, दहेज की बुराई मिटाने के लिए सरकार ने कानून बनाया है, पर हृदय-परिवर्तन के अभाव में वह इसे मिटाने में कहां तक प्रभावशाली हुआ है, यह आपसे छिपा हुआ नहीं है। यह एक दहेज के कानून की बात नहीं है, अपितु आम स्थिति है। लोग कानून के दायरे से बचने के लिए अपनी दुष्प्रवृत्ति को चलाए रखने के दूसरे-दूसरे उपाय और तरीके ढूंढ़ निकालते हैं। ऐसी स्थिति में कोई कड़ा-से-कड़ा कानून भी असहाय और अकिंचित्कर-सा बन जाता है। इसलिए अपेक्षित है कि लोग हृदय-परिवर्तन का यह कार्यक्रम अपनाएं। रेलवे गोदाम, काशीपुर रोड, कलकत्ता, १ मई १९५९
आचारण-शुद्धि के धरातल पर धार्मिक बनें
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