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________________ ६६ : आचरण-शुद्धि के धरातल पर धार्मिक बनें धर्म से नफरत क्यों __मैं देख रहा हूं, आज धर्म के प्रति लोगों की श्रद्धा कम होती जा रही है, मिटती जा रही है। यहां तक कि लोग धर्म को बुरा बताने लगे हैं, उससे नफरत तक करने लगे हैं। क्या धर्म वास्तव में बुरा है? क्या वह नफरत करने का तत्त्व है? नहीं, धर्म बुरा नहीं है। वह नफरत करने का तत्त्व बिलकुल नहीं है। तब लोग उसे बुरा क्यों कहते हैं ? उससे नफरत क्यों करते हैं ? यह भी निष्कारण नहीं है, सकारण है। क्या है वह कारण ? कारण यह है कि आज धर्म मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च आदि धर्मस्थानों एवं धर्मग्रंथों तक ही सीमित-सा हो गया है, उनमें कैद-सा हो गया है। धार्मिक कहलानेवाले लोगों के जीवन और जीवन-व्यवहार में वह स्थान नहीं पा रहा है। अतः धर्म के प्रति यदि जन-श्रद्धा पुनः पैदा करनी है, उसे नफरत से बचाना है तो धार्मिक लोगों को अपनी जीवन-शैली में परिवर्तित करना होगा, अपने व्यवहार और आचरण की स्वस्थता और शुद्धि पर ध्यान देना होगा। आप निश्चित माने कि स्वस्थ व्यवहार और पवित्र आचरण-ये दो ही तत्त्व लोगों को धर्म के प्रति आकर्षित कर सकते हैं, पर इसका अर्थ यह नहीं कि मैं पूजा-उपासना को निरर्थक बता रहा हूं। उसकी भी अपनी सापेक्ष उपयोगिता और मूल्य है। पर इतना सुनश्चित है कि मुख्य व्यवहार और आचरण की शुद्धि ही है। इसके साथ ही वह उपासना भी उपयोगी है, जो व्यक्ति के लिए व्यवहार और आचरण की शुद्धि की प्रेरणा बने। सत्यनिष्ठा है धार्मिकता की पहचान ____ जीवन के आचरण और व्यवहार की शुद्धि के लिए व्यक्ति को सत्यनिष्ठ बनाना होगा। यह कहना कि सत्य से व्यापार-व्यवसाय नहीं चल सकता, जीवन का व्यवहार नहीं चल सकता, व्यक्ति के गलत .१५८ ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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