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सांसारिक अवस्था तक साथ रहते हैं। इनसे छूटते ही आत्मा संसार से मुक्त होकर मोक्ष में पहुंच जाती है। इस अपेक्षा से इन्हें भवोपग्राहीकर्म भी कहा जाता है।
___ कर्मों का संक्षिप्त विश्लेषण मैंने आज किया। विस्तार में इनकी लंबी चर्चा भी की जा सकती है। मूलभूत बात है कि हम कर्मों के बंधन के प्रति जागरूक बनें, ताकि नए कर्मों के बंधन से यथाशक्य बचा जा सके। जो पहले के बंधे हुए कर्म हैं, उन्हें तपस्या-साधना के द्वारा तोड़ने के लिए अपने पुरुषार्थ का नियोजन करें। तभी यह कर्म-सिद्धांत जानने की सच्ची सार्थकता है।
कलकत्ता २९ अप्रैल १९५९
जैन-दर्शन में कर्म -
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