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________________ जाएंगे। फिर उन्हें स्वयं ही संप्रदाय से बाहर आकर कार्य करने का सुझाव अनपेक्षित लगने लगेगा। क्या सारा संसार बदल जाएगा कुछ लोग इस भाषा में बोलते हैं कि जब राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, गांधी-जैसे महापुरुष भी सारे संसार को नहीं बदल सके, तब क्या आप उसे बदल सकेंगे। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि मेरा यह स्वप्न ही नहीं है कि मैं सारे संसार को बदल दूंगा। हमें तो काम करना है, जितना हम कर सकें। दीपक और सूर्य बराबर नहीं होते। सूर्य सारे संसार में प्रकाश करता है, जबकि दीपक बहुत सीमित क्षेत्र को ही प्रकाशित कर पाता है। इसके बावजूद जितना प्रकाश वह कर सकता है, वह तो अच्छा ही है। क्या कोई यह चाहेगा कि वह जितना प्रकाश करता है, उतना भी न करे ? मेरी भी यही बात है। जितना हमारे से संभव है, उतना कार्य हम करते हैं। पीछे का कार्य आगे आनेवाले लोग करेंगे। विकास की संभावना सदा रहती है कुछ लोग कहते हैं कि आपके साधु अज्ञानी हैं। हालांकि मुझे उनकी प्रगति से असंतोष नहीं, फिर भी उनकी यह बात मैं सर्वथा गलत नहीं मानता। जब तक हम सर्वज्ञ नहीं हो जाते, तब तक विकास की अपेक्षा तो रहती ही है। अतः इस दृष्टि से आज के युग का प्रत्येक व्यक्ति अपूर्ण है। हां, एक बात अवश्य है कि मूढ़ और अपूर्ण में बहुत बड़ा अंतर है। मूढ़ वह है, जो मार्ग पहचान नहीं पाता। इस दृष्टि से मैं अपने साधुओं को मूद कभी नहीं मानता। बावजूद इसके, लोगों का अपना चिंतन है। जब मैं किसी की गालियां भी सुन सकता हूं, तब लोगों के प्रतिकूल विचार/आलोचना क्यों न सुनूं ? किसी के कुछ सोचने और मानने से हम वैसे बन तो नहीं जाते। हां, लोगों के आलोचनात्मक विचारों के परिप्रेक्ष्य में हमें अपना आत्मालोचन/आत्म-निरीक्षण अवश्य करना चाहिए। इस प्रक्रिया से गुजरते हुए यदि हमें उनकी आलोचना में कोई तथ्य नजर आए तो उसे सहर्ष स्वीकार करने में हमें कोई संकोच और परहेज नहीं होना चाहिए। कलकत्ता २६ अप्रैल १९५९ .१५२ - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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