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________________ बदलती गईं। आलोचना का स्वागत है अणुव्रत की निष्पक्ष आलोचना सामने आएगी तो हम उसका स्वागत करेंगे, मैं इस मानसिकता के साथ कार्य कर रहा हूं, पर अणुव्रत की आलोचना हो ही क्या सकती है? जो आंदोलन संयम की बात बताए, भला उसकी आलोचना होगी तो आखिर क्या! हां, किसी अणुव्रती की आलोचना हो सकती है, जिसे सुधारने का हमारा हमेशा प्रयत्न रहा है और रहेगा भी। अणुव्रत-आंदोलन निषेधात्मक क्यों कुछ लोगों का कहना है कि अणुव्रत केवल निषेधात्मक आंदोलन है। इस संदर्भ में मेरा चिंतन यह है कि नियम की भाषा नकार-बहुल ही होगी। हम मैत्री रखें, इसका कोई नियम नहीं हो सकता। वह भावना है। नियमसंरचना तो यही होगी कि किसी के साथ शत्रुता नहीं रखूगा, किसी को गाली नहीं दूंगा। आज तक जितने ही नियम बने हैं, वे निषेध-प्रधान ही हैं, चाहे हम पंचशील देखें या पंचयाम। अणुव्रत का कार्य-क्षेत्र मैं अणुव्रत को अतिवाद में नहीं ले जाना चाहता। अणुव्रत द्वारा सामाजिक और राजनीतिक सभी कार्य हो सकते हैं, यह मेरा दावा नहीं है। उससे तो केवल अध्यात्म-पक्ष ही सुदृढ़ हो सकता है। अहिंसा के आधार पर कोई मिल चलाना या खेती करना चाहे तो यह कदापि संभव नहीं है। समाज के लिए आवश्यक होते हुए भी इनमें स्पष्ट हिंसा है। अणुव्रत किसी प्रकार की हिंसा को प्रोत्साहित नहीं कर सकता। दृष्टि यथार्थदर्शी बने कुछ लोगों का सुझाव है कि आपको संप्रदाय के बाहर आकर काम करना चाहिए, पर कठिनाई यह है कि मुझे न तो तेरापंथ के सिद्धांतों के प्रति असंतोष है और न जैन-धर्म के बारे में ही कुछ शंका है। ऐसी स्थिति में यह कैसे संभव है? पर मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि जब अणुव्रत किसी संप्रदायविशेष का है ही नहीं, तब किसी को संदेह क्यों होना चाहिए। मैं ऐसा सुझाव देनेवालों से कहना चाहता हूं कि वे अपनी दृष्टि यथार्थदर्शी बनाएं। ऐसा होते ही वे वास्तविकता से परिचित हो अणुव्रत : अध्यात्म-पक्ष को सुदृढ़ बनाने का आंदोलन -१५१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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