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________________ ६३ : अणुव्रत : अध्यात्म-पक्ष को सुदृढ़ बनाने का आंदोलन एक अभाव की पूर्ति का प्रयत्न उस समय, जब देश में जनतंत्र नया-नया ही था, देश की आचारश्रृंखला ढीली पड़ गई थी। कहना चाहिए, आचार का भंयकर दुष्काल. सा पड़ गया था। यह एक स्वाभाविक बात है कि राष्ट्र में जिस समय जिस चीज का ज्यादा अभाव होता है, उसकी पूर्ति का विशेष प्रयास किया जाता है। यदि अनाज की कमी होती है तो अनाज का उत्पादन बढ़ाने के लिए विशेष प्रयत्न किया जाता है। पाट का उत्पादन बढ़ाने से उसकी पूर्ति नहीं हो सकती। इसी प्रकार जब देश में आचार की बहुत बड़ी क्षति हो गई थी, इस क्षेत्र में चिंतन करनेवालों, विचारकों का ध्यान उस ओर गया। हमने भी अपनी सीमाओं का ध्यान रखते हुए आचारात्मक रूपरेखा तैयार की। उसका नाम अणुव्रत-आंदोलन रखा। अणुव्रत-यह नाम भी आचार पर ही है। व्रत, आचार, संयम-ये सब एकार्थक हैं। अणुव्रत अर्थात छोटे-छोटे व्रत। छोटे-छोटे इसलिए कि वे बहुसंख्यक लोगों के लिए ग्राह्य बन सकें। महाव्रत गुण/मूल्य की दृष्टि से ऊंचे हैं, पर वे बहजन के लिए सफल नहीं होते। जनसाधारण में यह शक्ति नहीं होती कि वह उनका पालन कर सके। अणुव्रत की यात्रा अणुव्रत जब आंदोलन का रूप लेकर सामने आया, तब प्रारंभ में इसकी बड़ी कटु आलोचना हुई। कुछ लोगों ने मुझे और साधु-साध्वियों को लक्ष्य कर कहा कि ये लोग क्या चरित्र का उन्नयन करेंगे, जो स्वयं एक समाज के कठघरे में बंधे हुए हैं। और तो क्या, उस समय बहुतसे लोग हमारी बात सुनने के लिए भी तैयार नहीं थे, पर धीरे-धीरे ज्यों-ज्यों वह भूत उतरता गया, त्यों-त्यों लोगों की वे धारणाएं भी .१५० - - - - - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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