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________________ भी भयभीत न हो। यह कितनी विडंबना-भरी बात है कि सहिष्णुता धर्म का एक मौलिक तत्त्व है और धार्मिक क्षेत्र में असहिष्णुता का व्यापक रूप देखने को मिलता है ! यह एक कटु यथार्थ है कि धर्म के नाम पर बड़े-बड़े युद्ध लड़े गए, रक्त की नदियां बहीं। जिस धर्म का काम सूई की तरह दो फटे दिलों को जोड़ देने का है, उससे कैंची का काम लिया गया, काटने का काम लिया गया। मैं नहीं समझता कि इससे अधिक गर्हणीय बात और क्या हो सकती है! संसार के युद्ध रोकने के लिए बड़े-बड़े प्रयास चले, संयुक्त राष्ट्रसंघ (U.N.O.) और सुरक्षा-परिषद (Security Councial) -जैसे संगठन स्थापित हुए, पर युद्ध बंद नहीं हुए। आज तिब्बतियों पर चीन जो कुछ कर रहा है, वह जगजाहिर है। यद्यपि इस बारे में मुझे विशेष कुछ नहीं कहना है, क्योंकि यह मेरा क्षेत्र नहीं है, तथापि सिद्धांत रूप में इतना अवश्य कहना चाहूंगा के किसी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र पर अपने विचार थोप देना उचित नहीं है, उस व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के प्रति न्याय नहीं है। किसी पर अपने विचार लादने के लिए बल-प्रयोग करना तो निस्संदेह शांति को खतरा है। आज भारतवर्ष के राजनीतिक क्षेत्र की जो स्थिति है, उसे संतोषप्रद नहीं माना जा सकता। वहां समता, मैत्री और सहिष्णुता का स्पष्ट अभाव नजर आ रहा है। यही कारण है कि आज राजनीति दुर्नीति बन रही है। फलतः अच्छे लोग राजनीति के क्षेत्र में आना नहीं चाहते, और जो अच्छे-अच्छे लोग इस क्षेत्र में थे, वे एक-एक कर निकलते जा रहे हैं। कैसी बात है कि एक राजनीतिक दलविशेष का व्यक्ति दूसरे दलविशेष के व्यक्ति द्वारा कही गई उचित/अच्छी बात का इसलिए समर्थन नहीं कर पाता कि वह मेरे दल की नहीं है, दूसरे दल की है। मैं पूछना चाहता हूं कि सत्य और अच्छाई को, सत्य और अच्छाई के रूप में समर्थित न किया जाए, क्या यह मानवीय गरिमा के अनुरूप है। क्या धार्मिक क्षेत्र, क्या राजनीतिक क्षेत्र, क्या सामाजिक क्षेत्र, क्या और कोई अन्य क्षेत्र-सभी क्षेत्रों में व्याप्त पारस्परिक तनाव, कटुता और असहिष्णुता मिटे, यह मैत्री-दिवस मनाने का अभिप्रेत है। व्यक्ति स्वयं के द्वारा गत वर्ष में ज्ञात-अज्ञात रूप में दूसरों के प्रति हुए असद्व्यवहार, मैत्री-दिवस : अभिप्रेत और स्वरूप - १३७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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