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भूलों के लिए वर्ष में एक दिन सरल हृदय से क्षमा मांगे तथा दूसरों से जान-अनजान में कुछ प्रतिकूल हुआ हो तो उसके लिए स्वयं क्षमा दे-यह मैत्री-दिवस का स्वरूप है। इसके पीछे विशुद्ध पारस्परिक समता
और सहिष्णुता की पवित्र भावना है, किंतु क्षमा के आदान-प्रदान का यह क्रम मात्र उपचार नहीं, वास्तविक हो, अंतःप्रेरित हो यह नितांत अपेक्षित है। तभी मैत्री की भावना का व्यापक प्रसार हो सकेगा और तभी मैत्री-दिवस का रचनात्मक रूप सामने आ पाएगा, उसे मनाने की सही सार्थकता प्रकट हो सकेगी।
आप देखते हैं कि अमेरिका का राष्ट्रपति नव वर्ष के आरंभ में रूस को शुभकामना-संदेश भेजता है और ऐसा ही रूस का राष्ट्रपति भी करता है, किंतु प्रश्न तो यह है कि क्या उनका बाह्य रूप और आंतरिक रूप दोनों एक हैं? क्या वे हृदय से एक-दूसरे के प्रति शुभकामना करते हैं? यदि आंतरिक भावना वैसी नहीं तो यह केवल बाह्याचार है। कितना अच्छा हो कि वे अंतर से एक-दूसरे के प्रति शुभकामना करें। साथ ही गत वर्ष प्रकट-अप्रकट रूप में हुए दुर्व्यवहार और दुश्चिंतन के लिए परस्पर क्षमायाचना करें। मेरा विश्वास है, इससे पारस्परिक तनाव एवं कटुता कम होगी।
मैत्री-दिवस के इस पुण्य प्रसंग पर मैं अपनी ओर से अत्यंत ऋजुता के साथ क्षमायाचना करता हूं। न केवल उनसे, जिनसे मुझे स्नेह एवं आदर-भरा व्यवहार मिला, अपितु उन सबसे भी, जिन्होंने मेरा स्तरीय या अस्तरीय कैसा भी विरोध किया। जहां तक मेरा प्रश्न है, मुझसे इस तरह का कोई व्यवहार हुआ हो, मुझे ख्याल में नहीं है, तथापि ज्ञात-अज्ञात में जब-तब किसी के प्रति क्षोभ, उद्वेग या रोष के भाव उत्पन्न होना सर्वथा असंभव नहीं है। अतः उन सबसे अत्यंतअत्यंत नम्रता एवं सुजनतापूर्वक क्षमा मांगता हूं, जिनका हृदय मेरे व्यवहार के कारण व्यथित हुआ हो, भले वे यहां उपस्थित हों अथवा अन्यत्र कहीं हों। वे लोग भी स्वयं को टटोलें, जिनसे असद्व्यवहार हुआ है। मैं अपनी ओर से उनकी भूलें भुलाकर बिलकुल हलका बन रहा हूं, उन्हें अयाचित क्षमा प्रदान कर रहा हूं।
आज से हमारा नया वर्ष प्रारंभ हो रहा है। हम मैत्री की भावना का विकास करें। जन-जन के मुख पर ये घोष हों
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-- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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