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________________ ५४ : विद्यार्थी - काल : जीवन-निर्माण की स्वर्णिम वेला विद्याध्ययन का भारतीय आदर्श विद्यार्जन एक पवित्र कर्म है, पर उसका उद्देश्य सही होना चाहिए । मैं देख रहा हूं कि आजकल अधिकतर छात्र-छात्राओं के सामने परीक्षाओं में उत्तीर्ण होकर ऊंची-ऊंची उपाधियां पा लेने का उद्देश्य रहता है । मेरी दृष्टि में विद्यार्जन का इतने छोटे-से उद्देश्य तक सीमित कर देना उसके साथ न्याय नहीं है। यह तो बहुत गौण उद्देश्य है। विद्यार्जन का वास्तविक और मुख्य उद्देश्य है- आत्म-विकास और जीवन-शुद्धि । शास्त्रों में विद्या को परिभाषित करते हुए कहा गया है-सा विद्या या विमुक्तये। अर्थात विद्या वही है, जो विमुक्ति की ओर ले जाए । विद्याध्ययन का यह भारतीय आदर्श रहा है, पर बड़े खेद का विषय है कि आज यह महान आदर्श भुलाया जा रहा हैं । उसका दुष्परिणाम हमारे सामने है। राष्ट्र की भावी पीढ़ी के जीवन का सही निर्माण नहीं हो रहा है। उसमें सत्संस्कारों का वपन नहीं हो रहा है। ध्यान रहे, जीवन का सही निर्माण वही विद्याध्ययन कर सकता है, जिसका उद्देश्य विमुक्ति हो । जो विद्याभ्यास बंधन की ओर ले जाए, वह सत्संस्कारों का वपन कैसे कर सकता है? उससे जीवननिर्माण कैसे संभव है ? इस परिप्रेक्ष्य में उपस्थित छात्राओं से कहना चाहूंगा कि वे अपने इस विद्यार्थी- काल का सही-सही मूल्यांकन करें। यह उनके जीवन-निर्माण की स्वर्णिम वेला है। इसका सुंदरतम उपयोग करती हुई वे विद्याध्ययन का सही लक्ष्य पूरा करें। आत्म-विकास एवं जीवन-शुद्धि की दिशा में चरणान्यास करें, उस दिशा में अधिक-से-अधिक आगे बढ़ें। ज्ञान का यथार्थ स्वरूप दूसरी बात - ज्ञान के प्रति उनकी अवधारणा सम्यक बने। मेरी दृष्टि में पुस्तकीय ज्ञान वास्तव में ज्ञान नहीं है। वह तो मात्र ज्ञान प्राप्ति का एक ज्योति जले : मुक्ति मिले • १३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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