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________________ समानांतर मेरे विरोधियों की भी कोई कमी नहीं है। लेकिन मैं उनके विरोध से खिन्न नहीं होता। क्यों ? यह इसलिए कि मैं उसे अनुचित नहीं मानता, बल्कि उससे गुण लेता हूं। मैं इस भाषा में सोचता हूं कि विरोधियों के बने रहने से व्यक्ति के समक्ष फूलने का, संतुलन खोने का अवसर आने की संभावना क्षीणप्रायः बन जाती है, जो कि विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यही कारण है विरोधियों का विरोध हंसते-हंसते सहन करना मेरी सहज वृत्ति है। मेरा चिंतन है कि विरोधियों के प्रति भी उचित आदर की भावना रहनी चाहिए। जो ऊंचे स्तर के विरोधी हैं, वे वास्तविकता से अनभिज्ञ होने कारण विरोध करते हैं। मैं जहां तक सोचता हूं, सही जानकारी प्राप्त होते ही उनका स्वर स्वयं बदल जाता है। अब जो जघन्य और निम्न कोटि के विरोधी हैं, जो कि मात्र दुर्भावना के वशीभूत होकर ऐसा करते हैं, उनसे सच्चे व्यक्ति का कुछ भी बिगड़ता नहीं। हां, उनका विरोध उसके लिए एक परीक्षा/कसौटी का समय अवश्य होता है कि ऐसी स्थिति में भी उसे क्षोभ और उग्रता न आए। कलकत्ता २९ मार्च १९५९ विरोध भी उपयोगी है -१२९. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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