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________________ ५२ : जैन आगमों में भारतीय जीवन जैन वाङ्मय के दो वर्ग हैं- मूल आगम तथा उत्तरवर्ती साहित्य। मूल आगमों की भाषा अर्ध मागधी और प्राकृत है । उत्तरवर्ती ग्रंथ प्राकृत और संस्कृत दोनों भाषाओं में हैं। जैन-दर्शन, जैन- संस्कृति और भारतीय जीवन की सर्वांगीण जानकारी प्राप्त करने के लिए मूल आगम जानना अत्यंत महत्त्वपूर्ण और आवश्यक है। आगम पढ़ने से यह पता चलता है कि तात्कालीन सामाजिक जीवन श्रद्धा, विश्वास और संतोषप्रधान था । जीवन का एक भाग लोग अध्यात्मसाधना में लगाना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य भी समझते थे। आजकल की तरह वह मात्र भौतिक साधना में ही नहीं लगता था । उस समय के लोग अत्यंत सुखी थे, ऐसा आगमों में उपलब्ध अनेक उत्सवों के वर्णन से अनुमित होता है। यह भी पता चलता है कि लोग सामूहिक जीवन जीते थे। बड़े-बड़े कुटुंबों में एक साथ रहते थे। उनका कौटुंबिक जीवन बहुत ही संगठित था । सामुदायिक व्यवसाय-पद्धति का भी प्रचलन था । जलमार्ग और स्थलमार्ग- दोनों से ही व्यावसायिक विदेश यात्राओं का वर्णन प्राप्त होता है। आगमों में युद्धों एवं उनमें होनेवाले नर-संहार, दंड आदि का भी उल्लेख मिलता है। दंड न केवल राजसत्ता के द्वारा, अपितु कुटुंब के द्वारा भी दिया जाता था । प्राण दंड दिए जाने का भी प्रचलन था । आगमों में अरण्यवासी संन्यासियों द्वारा किए गए धर्म एवं संप्रदायपरिवर्तन का भी उल्लेख है। व्रत और संयम को मुक्ति का मार्ग समझा जाता था। भले आजकल बहुत से लोग व्रत और संयम को बंधन मानने लगे हैं, पर तत्त्वतः स्वेच्छा से स्वीकृत व्रत और संयम मुक्ति का मार्ग ही है। इसलिए अणुव्रत आंदोलन आत्म-संयम पर बल देता है, व्रती बनने की प्रेरणा करता है। • १२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only ज्योति जले : मुक्ति मिले www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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