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प्राण-हत्या ही हिंसा नहीं है, किसी को गाली देना भी हिंसा है, किसी का मन दुखाना भी हिंसा है, किसी का अहित सोचना भी हिंसा है।
अहिंसा की परंपरा
अहिंसा धर्म का एक शाश्वत और मौलिक सिद्धांत है। इस विचार के विकास की एक लंबी परंपरा है। असंख्य वर्ष पूर्व प्रागैतिहासिक काल में आदि तीर्थंकर ऋषभ हुए थे। उन्होंने अहिंसा - धर्म का निरूपण किया। वैदिक परंपरा में घोर आंगिरस ने श्रीकृष्ण को जो उपदेश दिया, उसमें भी अहिंसा का निर्देश हुआ
है।
अहिंसा का फलित
अहिंसा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह संसार के छोटेसे-छोटे प्राणी से लेकर बड़े-से-बड़े प्राणी तक सभी का क्षेम करनेवाली है। जीवन में स्थान पाते ही यह आत्म-: -शुद्धि शुरू कर देती है। हालांकि अपनी प्रतिष्ठा के साथ ही यह सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि जीवन के विभिन्न पक्षों में भी शुद्धीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ कर देती है, पर यह उसका गौण परिणाम है। मुख्य फल आत्म-: -शुद्धि ही है। अणुव्रत आंदोलन : अहिंसा का सक्रिय प्रयोग
हम वर्षों से अणुव्रत-आंदोलन के रूप में एक राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम चला रहे हैं। एक अपेक्षा से यह अहिंसा का ही एक रचनात्मक एवं सक्रिय प्रयोग है। छोटे-छोटे व्रतों की आचार संहिता के माध्यम से यह लोक-जीवन को हिंसा से अहिंसा की ओर मोड़ने का प्रयत्न कर रहा है, उसे असंयम से संयमाभिमुख बनाने की दिशा में कार्य कर रहा है। आपसे अपेक्षा है कि आप इस आंदोलन के उद्देश्य, दर्शन एवं कार्यपद्धति से परिचित होकर इसके साथ सक्रिय रूप में जुड़ें और अहिंसा की प्रतिष्ठा में अपनी संभागिता सुनिश्चित करें।
इस्टीट्यूट हॉल, कलकत्ता यूनिवर्सिटी
कलकत्ता
२२ मार्च १९५९
अहिंसा प्राणिमात्र के लिए क्षेमंकरी है
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