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________________ के संपादन के संदर्भ में उनकी प्रेरणा व प्रोत्साहन ही नहीं, अनुभवपूरित सुझाव भी मुझे प्राप्त होते रहे हैं। वे मेरे लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हुए हैं। उनके प्रति मैं अपनी हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। विनयांजलि संघपरामर्शक मुनिश्री मधुकरजी के प्रति समर्पित करता हूं, जिनका कुशल अभिभावकीय संरक्षण व मार्गदर्शन मेरे जीवन-विकास की यात्रा का पौष्टिक संबल है। इस ग्रंथमाला के संपादन में भी उनका वाचिक और अवाचिक दोनों प्रकार का मार्गदर्शन मुझे मुक्त भाव से प्राप्त हुआ है। ___ ग्रंथ की सामग्री के संग्रहण/संकलन में जिन साधु-साध्वियों एवं कार्यकर्ताओं ने अपने पुरुषार्थ का नियोजन किया है, उनके श्रम का प्रमोदभाव से मूल्यांकन करता हूं। ___ प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला के उन्नीसवें पुष्प के प्रकाशित होने के लगभग दो वर्षों पश्चात यह बीसवां पुष्प प्रकाश में आ रहा है। यह इस बात को दरसाता है कि ग्रंथमाला के संपादन का कार्य बहुत मंथर गति से आगे बढ़ रहा है, जबकि ग्रंथमाला के रूप में संपादित करने के लिए पड़ी अवशिष्ट सामग्री की प्रचुरता एवं इस ग्रंथमाला का महत्त्व देखते हुए इसे तीव्र गति से आगे बढ़ाने की अपेक्षा थी। फिर पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के महाप्रयाण के पश्चात तो यह त्वरता और भी अधिक आवश्यक थी। निश्चय ही इस गति-श्लथता के लिए मैं जिम्मेदार हूं। इस क्षेत्र में हुआ प्रमाद स्वीकार करने में मुझे कोई संकोच नहीं है। अलबत्ता कुछ दूसरे भी कारण इस गति-श्लथता के पीछे हैं, पर उनकी चर्चा करने की कोई सार्थकता नहीं समझता, क्योंकि उनका उल्लेख करके भी मैं अपनी मुख्य जिम्मेदारी से नहीं बच सकता। अब अपेक्षा यही है कि मंथर गति की स्थिति समाप्त हो और ग्रंथमाला के संपादन का कार्य त्वरता के साथ आगे बढ़े। पूज्य गुरुदेव का परोक्ष मंगल आशीर्वाद एवं आचार्यश्री महाप्रज्ञ की प्रत्यक्ष प्रेरणा मेरा पथ-प्रशस्त करेगी, ऐसा विश्वास है। वह दिन मेरे लिए अत्यंत आह्लाद का होगा, जिस दिन मैं इस ग्रंथमाला के कार्य की संपन्नता के रूप में पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के प्रति अपनी रचनात्मक श्रद्धांजलि समर्पित करूंगा। भिवानी मुनि धर्मरुचि २ दिसंबर १९९८ -बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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