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________________ बहुलांश अनंत में विलीन हो गया। निश्चय ही यह एक अपूरणीय क्षति हुई है, पर जो शेषांश बचा है, वह भी अपने-आपमें अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। कहना चाहिए कि वह संत-साहित्य की एक अमूल्य निधि है। अपेक्षा महसूस की गई कि इस अमूल्य साहित्य-निधि का व्यवस्थित संपादन हो। इस संदर्भ में चिंतन हुआ और उसकी निष्पत्ति के रूप में प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला की बात सामने आई। मुझे इस ग्रंथमाला के संपादन-कार्य के लिए पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी का मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ, इसे मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूं। यद्यपि मैं अपनी अक्षमताओं से अपरिचित नहीं हूं, पर इस कार्य में मुझे अपनी क्षमता का सुंदर उपयोग करने का अवसर प्राप्त हुआ, यह मेरे लिए अत्यंत तोष का विषय है। ___ प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला के उन्नीस पुष्प पूर्व में विभिन्न नामों से जनता के हाथों में पहुंच चुके हैं। उसी क्रम में यह बीसवां पुष्पज्योति जल : मुक्ति मिले के रूप में सामने आ रहा है। इसमें सन १९५९ के प्रवचनों की प्रस्तुति है। यह प्रस्तुति गंथमाला के पूर्व ग्रंथ-पुष्पों की तरह ही जन-जन के लिए ज्ञानवर्धक, दिशाबोधक सिद्ध होगी, ऐसी आशा है। पूज्य गुरुदेव तुलसी मेरे जीवन-निर्माता हैं, मेरी आस्था के नाभिकीय केंद्र हैं। इस ग्रंथ की संपन्नता के अवसर पर उन्हें अपनी श्रद्धासिक्त वंदना समर्पित करता हूं। कृतज्ञता ज्ञापित करने जैसी कोई बात उनकी असीम कृपा को सीमित करने-जैसी हरकत होगी, जो मुझे काम्य नहीं है। आचार्यश्री महाप्रज्ञ गुरुदेवश्री तुलसी के यशस्वी उत्तराधिकारी हैं। उनके कुशल एवं सक्षम नेतृत्व में तेरापंथ धर्मसंघ विकास की नई-नई ऊंचाइयों का स्पर्श कर रहा है। उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे इस कार्य की सफलता का प्राणवान आधार है। उनके चरणों में अपनी प्रणति निवेदन करता हूं। महाश्रमणी, साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी ने एक महानुष्ठान के रूप में वर्षों तक गुरुदेवश्री तुलसी का वाङ्मय संपादित किया है। गुरुदेव के महाप्रयाण के पश्चात भी वे इस अनुष्ठान में लगी हुई हैं। चूंकि प्रवचन पाथेय ग्रंथमाला भी तुलसी वाङ्मय का ही एक हिस्सा है, इसलिए वे इस ग्रंथमाला के साथ भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं। ग्रंथमाला - ग्यारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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