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________________ और दशा बदली है। उन्होंने असंयम से संयम की ओर चरणन्यास किया है, हैवानियत के उजाड़ को छोड़ मानवता का राजपथ पकड़ा है। वे दुर्व्यसनों से मुक्त होकर सात्त्विक जीवन जीने के लिए संकल्पित हुए हैं। जातिवाद, वर्णवाद, भाषावाद आदि की सकीर्णताओं एवं कुरूढ़ियों के दूषित वातावरण से निकलकर प्रगतिशीलता के खुले मैदान में आए हैं। ये सारी स्थितियां यह दरसाती हैं कि आचार्य तुलसी के प्रवचनों में व्यक्ति-व्यक्ति का जीवन रूपांतरित करने की एक अद्भुत गुणात्मकता थी। उनका प्रवचन-कौशल भी विलक्षण था। वे मात्र मुंह से नहीं बोलते थे, अपितु उनका अंग-अंग और रोआं- रोआं बोलता था । कथ्य के भाव के अनुरूप बननेवाली उनकी मुद्राएं देखते ही बनती थीं। उन मुद्राओं के आधार पर अनेक बार उनकी भाषा न समझनेवाले लोग भी एक सीमा तक उनके भाव समझने में सफल हो जाते थे। उनके प्रवचनों में संस्कृति, इतिहास, दर्शन, तत्त्व, संगीत, कथा, दृष्टांत, आख्यान, प्रेरणा की मिली-जुली जो इंद्रधनुषी छटा बिखरती थी, वह इतनी चित्ताकर्षक होती थी कि शिक्षित-अशिक्षित, ग्रामीण-शहरी, बालक- - वृद्ध, महिला-पुरुष, हरिजन महाजन, आस्तिक-नास्तिक "सभी तरह के लोग भित्ति - चित्रित और भाव-विभोर से उनके प्रवचन का एक-एक शब्द पीते हुए-से नजर आते थे। इस संदर्भ में सर्वाधिक उल्लेखनीय बात तो यह है कि उनके प्रवचन के वाक्य वाक्य में उनकी जीवन-अनुभूति ध्वनित होती थी, शब्दशब्द में उनकी साधना रूपायित होती थी, अक्षर-अक्षर में उनकी आत्मा प्रतिबिंबित होती थी; और ऐसी स्थिति में किसी प्रवचनकार के प्रवचन में व्यक्ति के अंतस्तल का स्पर्श करने की शक्ति पैदा हो जाना बहुत स्वाभाविक है। आचार्य तुलसी प्रायः एक बार तो प्रतिदिन प्रवचन करते ही थे, अनेक बार दो-दो, तीन-तीन बार भी बोलते थे। कभी-कभी तो दिन में चार-चार बार प्रवचन करने का प्रसंग भी बन जाता था। इस क्रम से उन्होंने लगभग साठ वर्षों तक प्रवचन किया। यदि छह दशकों की इस सुदीर्घ अवधि के एक-एक प्रवचन का व्यवस्थित संग्रहण हो पाता तो वह संकलन इस शताब्दी की सफल धर्मक्रांति के इतिहास का एक दुर्लभ दस्तावेज होता, जन-जागरण के पुनीत अभियान का एक प्रेरक आलेख बनता, पर अनेक वर्षों तक प्रवचन संग्रह की सुस्पष्ट चिंतना एवं समुचित व्यवस्था के अभाव में यह संभव नहीं हुआ । परिमाणतः उनके प्रवचनों का Jain Education International दस For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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