________________
परिणाम भोगना पड़ता है। होली आत्मोत्सर्ग एवं आत्मोदय के साथ मनाएं
अभी सामने होली का त्यौहार है। इस अवसर पर होनेवाला अभद्र एवं अश्लील व्यवहार न केवल प्रगाढ़ अशुभ कर्म-बंधन का हेतु है, अपितु भारतीय संस्कृति पर कलंक का टीका है। अपेक्षा है, इस त्यौहार को सभी प्रकार की विकृतियों से मुक्त किया जाए। लोग अशिष्ट हंसीमजाक, अभद्र एवं अश्लील व्यवहार का त्याग कर इसे आत्मोत्सर्ग और आत्मोदय के रूप में मनाएं। इससे पर्व का स्वरूप तो निखरेगा ही, वे अशुभ कर्म-बंधन से भी बचेंगे।
_होली पर्व की बात तो मैंने प्रासंगिक रूप में कही। मूल मुद्दे की बात यह है कि व्यक्ति कर्म-बंधन में स्वतंत्र है, पर फल भुगतने में स्वतंत्र नहीं है। ऐसी स्थिति में यदि वह कर्मों का कटु परिणाम भोगना नहीं चाहता तो उसे कर्म-बंधन के प्रति सजग बनना चाहिए। यानी वह अपने मन, वचन और काया से कोई ऐसी दुष्प्रवृत्ति न करे, जिससे अशुभ बंधन हो। यह सजगता उसे दुःख भोगने की स्थिति से बचाएगी।
कलकत्ता २१ मार्च १९५९
कर्म-बंधन के प्रति सजग बनें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org