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________________ बंधन : ४७ : कर्म - बंधन के प्रति सजग बनें मुक्ति यह एक शाश्वत सचाई है कि बंधन कष्टकर होता है और मुक्ति आह्लाददायक। दूसरे शब्दों में बंधन दुःख है और मुक्ति सुख । दुःख-सुख की इससे अधिक तथ्यपरक और क्या मीमांसा हो सकती है ? बंधन और मुक्ति की इससे सीधी और सरल क्या परिभाषा हो सकती है ? बंधन क्या है ? मुक्ति क्या है ? तत्त्व की भाषा में आत्मा का कर्मों से जकड़ना बंधन या बंध है और उनसे छूटना मुक्ति है, मोक्ष है। पुद्गल परम उपकारी हैं - कर्मों के बारे में जैन दर्शन में विस्तृत विवेचन उपलब्ध है। उसके अनुसार कर्मों के आठ प्रकार हैं और वे आठों ही प्रकार के कर्म पुद्गल हैं । पुद्गल जैन- दर्शन का परिभाषिक शब्द है। स्पर्श, रस, गंध और वर्णयुक्त द्रव्य पुद्गल है। संसार में जितने मूर्त / दृश्य पदार्थ हैं, वे सभी पुद्गल हैं । पुद्गल को सामान्य भाषा में भौतिक पदार्थ या जड़ पदार्थ भी कहा जाता है। पूरे संसार में पुद्गल भरे पड़े हैं। वे विभिन्न रूपों में हमारे उपयोग में आते हैं। हम खाने-पीने, पहनने ओढ़ने आदि के रूप में जितनी भी चीजों का उपयोग करते हैं, वे सभी पुद्गल हैं । और तो क्या, श्वास के रूप में ग्रहण की जानेवाली वायु भी पुद्गल है। पुद्गल एक दृष्टि से हमारे परम उपकारी हैं। हमारी छोटी-बड़ी हर प्रवृत्ति में उनका अनिवार्य सहयोग होता है। उनके सहयोग के अभाव में हम कोई प्रवृत्ति नहीं कर सकते। यहां तक कि हमारे बोलने और चिंतन-मनन करने में भी उनका अनिवार्य सहयोग होता है। सभी पुद्गल रूपी हैं, मूर्त हैं, किंतु हमारी आंखों के विषय मात्र बहुत स्थूल स्थूल पुद्गल ही बनते हैं। सूक्ष्म पुद्गल हम नहीं देख सकते। कर्मबंधन के प्रति सजग बनें Jain Education International For Private & Personal Use Only ११३० www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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