________________
मान्यता और समझ में पर्याप्त परिष्कार करने की अपेक्षा है। वस्तुतः समाजविशेष या क्षेत्रविशेष के रीति-रिवाज सभ्यता के अंतर्गत समाविष्ट होते हैं। सभ्यता और संस्कृति दोनों अलग-अलग तत्त्व हैं। उन्हें एक करने की भूल नहीं होनी चाहिए।
संस्कृति बहुत गहरा तत्त्व है। उसे समझने के लिए न केवल उसका शब्दार्थ जानना अपेक्षित है, अपितु उसके अंतर्निहित संकेत और भावना को भी आंकने व परखने की जरूरत है। इसके अभाव में उसका सम्यक अवबोध नहीं हो सकता। संस्कृति संस्कार को कहते हैं। साथ ही जिन साधनों के द्वारा संस्कार प्राप्त होते हैं, वे भी संस्कृति के अंग हैं। इस प्रकार मानवता और उसके विकास के साधन दोनों ही संस्कृति
शिक्षायतन हॉल, कलकत्ता १९ मार्च १९५९
ज्योति जले : मुक्ति मिले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org