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उपयोगी है आलोचना
आलोचना बहुत ही लाभदायक और हितकर है, क्योंकि वह व्यक्ति के दोष निकलने में सहायक होती है, परंतु उसका उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए, वरना वह निंदा की कोटि में समाविष्ट हो जाएगी। निंदा मनुष्य को पतन की ओर अग्रसर करती है। यदि गुरु में भी कोई दोष दीखे तो उन्हें स्पष्ट निवेदन करना चाहिए, न कि उसे छिपाना चाहिए या पीठ-पीछे उसकी चर्चा दूसरों के आगे करनी चाहिए। पीठ-पीछे चर्चा करना तो अत्यंत जघन्य वृत्ति है। इससे तो सलक्ष्य बचना चाहिए।
कलकत्ता १९ मार्च १९५९
गुरु कैसा हो
- १०९.
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