________________
दृष्टि से बेकार है, पर ज्ञान का तात्पर्य इतना ही नहीं कि व्यक्ति प्रेय और श्रेय का भेद समझ ले। यह तो अधूरा ज्ञान है, जिसकी कि कोई बहुत सार्थकता नहीं है। उसकी सार्थकता तभी है, जब व्यक्ति प्रेय और श्रेय का भेद जानकर प्रेय का परित्याग कर दे और श्रेय का पथ स्वीकार कर
ले।
कलकत्ता १८ मार्च १९५९
श्रेय का संग्रहण करें
-१०७.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org