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________________ निर्वीर्य होता है, वह अपना लक्ष्य भेदने के लिए आवश्यक पराक्रम और पुरुषार्थ नहीं कर सकता और ऐसी स्थिति में सफलता बिलकुल नजदीक होकर भी उससे कोसों दूर रह जाती है। व्यापारी पुरुषार्थ का मूल्यांकन करें आज भारतवर्ष की जो दुर्दशा हो रही है, उसका एक बहुत बड़ा कारण निर्वीर्यता है। समाज के सभी वर्गों में इस निर्वीर्यता का प्रभाव बहुत स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रहा है। मेरे समक्ष व्यापारी लोग बड़ी संख्या में उपस्थित हैं। व्यापारी वर्ग या व्यापार का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। अधिकतर व्यापारी लोग इस भाषा में सोचने लगे हैं कि बिना बेईमानी एवं अप्रामाणिकता का सहारा लिए काम नहीं चल सकता, हम व्यापार में सफल नहीं हो सकते, पर सचाई यह है कि ईमानदारी एवं प्रामाणिकता से व्यापार करने का उन्होंने साहस ही नहीं किया, उस दिशा में प्रयास ही नहीं किया, अपने पुरुषार्थ का नियोजन ही नहीं किया। यदि कुछ व्यापारी भगवान महावीर के पुरुषार्थ के दर्शन से प्रेरणा लेकर पूर्ण निष्ठा के साथ इस दिशा में प्रयास करें, अपने पुरुषार्थ का नियोजन करें तो मेरा विश्वास है कि न केवल उन्हें सफलता ही प्राप्त होगी, अपितु दूसरे-दूसरे व्यापारियों के लिए भी वे एक आदर्श व प्रेरक उदाहरण बनकर अनुकरणीय बन जाएंगे। अतः यह नितांत अपेक्षित है कि लोग पुरुषार्थ का सही-सही मूल्यांकन करते हुए अपनी पुरुषार्थचेतना जगाने के लिए सचेष्ट बनें। श्रमण-संस्कृति पुरुषार्थ की संस्कृति है। जैन-मुनि उसके प्रतीक और संवाहक हैं। वे स्वयं पुरुषार्थप्रधान जीवन जीते हैं और जन-जन के लिए इसके प्रेरणास्रोत बनते हैं। उनका सान्निध्य एवं संपर्क आपकी पुरुषार्थ-चेतना के जागरण में निमित्त और हेतुभूत बन सकता है। कलकत्ता १७ मार्च १९५९ पुरुषार्थ-चेतना जागे -१०५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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