SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३ : पुरुषार्थ-चेतना जागे उत्थान का आधार जीवात्मा के तीन प्रकार हैं-अज्ञ, मूढ़ और निर्वीर्य। जिसमें ज्ञान का अभाव होता है, वह अज्ञ है। मूढ वह होता है, जिसकी बुद्धि और चेतना मोहग्रस्त होती है। निर्वीर्य की कोटि में वे लोग समाविष्ट हैं, जिनमें ज्ञान, शक्ति-सामर्थ्य तो रहता है, पर साहस, पराक्रम और पुरुषार्थ के अभाव में उनका ज्ञान व शक्तियां निष्क्रिय पड़ी रहती हैं, उनकी सार्थकता प्रकट नहीं होती। तुलनात्मक दृष्टि से देखा जाए तो आज संसार में इस कोटि के लोग सबसे अधिक हैं। इस स्थिति में भगवान महावीर का यह वचन कि उत्थान पराक्रम एवं पुरुषार्थ से होता है अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उसे हृदयंगम करने की अत्यंत आवश्यकता है। भाग्य का स्थान प्रश्न किया जा सकता है कि क्या जीवन-विकास में भाग्य का कोई स्थान नहीं है। जीवन-विकास में भाग्य की कोई भी भूमिका नहीं है, ऐसा मैं नहीं कहता। उसकी भी अपनी एक भूमिका है, उसका भी अपना एक स्थान है, पर इतना सुनिश्चित है कि उसकी भूमिका या स्थान मुख्य नहीं है। मुख्य भूमिका या स्थान पराक्रम और पुरुषार्थ का ही है, क्योंकि उसी के आधार पर भाग्य निर्मित होता है। व्यक्ति जैसा पराक्रम और पुरुषार्थ करता है, उसी के अनुरूप भाग्य बनता और बिगड़ता है। भगवान महावीर ने इसी लिए पराक्रम और पुरुषार्थ पर सर्वाधिक बल दिया है। पुरुषार्थी व्यक्ति ईश्वर की सत्ता में विश्वास करता हुआ भी उससे भीख नहीं मांगता। वह तो उसे आदर्श के रूप में सामने रखता हुआ उससे प्रेरणा प्राप्त करता है और सही दिशा में पराक्रम और पुरुषार्थ का नियोजन कर अपनी मंजिल तक पहुंचता है। जो व्यक्ति • १०४ - - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy