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अनैतिक प्रवृत्तियों पर संयम का अंकुश लगाना शुरू कर दे तो समाज का नक्शा बदलते वक्त नहीं लगेगा। अणुव्रत आंदोलन जन-जन को संयम के अंकुश का अथवा दूसरे शब्दों में आत्मानुशासन का पाठ पढ़ाता है। उसका घोष ही है - संयमः खलु जीवनम् - संयम ही जीवन है ।
अनैतिकता का कारण
यदि हम भ्रष्टाचार, अनैतिकता - जैसी समस्याओं के कारण - विश्लेषण में जाएं तो यह बात बहुत स्पष्ट रूप में सामने आएगी कि आज अर्थ लोगों के जीवन का साध्य बन गया है। यह इसलिए कि वे धन से सुखशांति मिलने का विभ्रम पालते हैं। ऐसी स्थिति में आर्थिक सदाचार और साधन - शुद्धि की बात समाप्तप्रायः हो जाती है। भले गलत तरीकों से धन जुटाकर लोग धनकुबेर बन जाते हैं, पर सुख-शांति कहां ? वह तो उनसे दूर से दूर होती चली जाती है। अर्थकेंद्रित जीवन बनने के पश्चात कृत्रिम आवश्यकताएं और आकांक्षाओं का ऐसा विस्तार शुरू हो जाता है कि जिसका कहीं अंत नहीं है। उन आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की संपूर्ति संभव नहीं है। ऐसे में यह जीवन दुःखमय बन जाता है, अशांति का पिंड न जाता है। यदि लोग वास्तव में ही सुख-शांति चाहते हैं तो उन्हें अपने जीवन का क्रम बदलना होगा, अर्थ के प्रति अपना दृष्टिकोण सम्यक बनाना होगा। यानी अर्थ मात्र जीवन चलाने का साधन है, साध्य नहीं है - यह दृष्टिकोण निर्मित करना होगा। जहां यह दृष्टिकोण बना, येन केन प्रकारेण धनार्जन करने की वृत्ति स्वतः समाप्त हो जाएगी। जीवन में सदाचार एवं नैतिक मूल्य प्रतिष्ठित हो जाएंगे । अणुव्रत आंदोलन नैतिकता एवं सदाचार की प्रतिष्ठा का आंदोलन है। इसे अपनाकर सुख-शांति की प्राप्ति सुनिश्चित की जा सकती है ।
कलकत्ता १५ मार्च १९५९
संयम का वातावरण निर्मित हो
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