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सत्संस्कार स्वतः आ जाएंगे। अनाचार छूटा कि सदाचार स्वतः आ जाएगा। इस दृष्टि से वह निषेधात्मक होते हुए मूलतः निर्माणात्मक है। उसमें नैतिक मूल्यों पर आधारित ऐसे नियमों की संकलना की गई है, जिन्हें सभी धर्मावलंबी समान रूप से स्वीकार कर सकते हैं। इससे भी आगे नास्तिक लोगों को भी उन्हें स्वीकार करने में कोई कठिनाई नहीं हो सकती। एक अपेक्षा से यह आंदोलन मानव-धर्म के रूप में प्रतिष्ठित हो रहा है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इससे व्यक्ति का वर्तमान तो सुधरता ही है, अतीत भी कलंकित नहीं होता, भविष्य भी आतंकित नहीं होता। मैं मानता हूं, यदि व्यापक स्तर पर लोग इस आंदोलन की आचार-संहिता स्वीकार करें और उसका आत्मनिष्ठा के साथ पालन करें तो दुःख और अशांति का वातावरण अपने-आप समाप्त हो सकता है। इसकी परिणति यह आएगी कि लोगों के जीवन में शांति का अवतरण होगा। वे सुख की जिंदगी जी सकेंगे।
कलकत्ता
१४ मार्च १९५९
शांति और सुख की दिशा
-१०१.
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