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________________ - ४१ : शांति और सुख की दिशा सदियों की गुलामी के पश्चात भारतीय लोगों ने आजादी की स्वर्णिम कल्पना की थी, पर आजादी मिलने के पश्चात आज भारतीय जन-मानस जिस प्रकार क्रंदन कर रहा है, उसे देख ऐसा कहना अनुचित नहीं होगा कि आजादी तो अवश्य मिली, पर उसके साथ जो सुखद कल्पनाएं जुड़ी थीं, वे साकार नहीं हो पाईं। आप देखें, चारों ओर दुःखही-दुःख नजर आ रहा है, सर्वत्र अशांति-ही-अशांति छाई है। अनाचार, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, हिंसा आदि अवांछनीय तत्त्वों का साम्राज्य-सा छा गया है। राजनीतिक लोग अपनी स्वार्थ-सिद्धि में लगे हैं। जनता को उनसे आशा तो है ही नहीं, बल्कि उनके प्रति घृणा का भाव है। इस स्थिति में परिवर्तन कैसे आए ? जनता को आजादी का सही आनंद कैसे मिले ? समस्याओं का समाधान कैसे हो? कुछ लोग इस भाषा में सोचते हैं कि कानून से स्थिति में सुधार आ सकता है, तो कुछ का चिंतन है कि शक्ति-प्रयोग से स्थिति में बदलाव आ सकता है। इसी प्रकार कुछ लोगों का मानना है कि सैनिक शासन से परिवर्तन आ सकता है। लोगों का अपना-अपना विचार है, पर मैं इन तीनों विचारों से और इस प्रकार के अन्य किसी विचार से सहमत नहीं हूं। मेरी दृष्टि में समाधान एक ही है और वह यह कि प्रत्येक व्यक्ति अथवा कम-से-कम विवेकशील और चिंतनशील लोग जीवन जाग्रत कर अपनी दृष्टि, व्यवहार और आचरण बदलें। आप निश्चित मानें, यह कार्य स्वयं करने से ही होगा, दूसरा कोई नहीं करेगा। यदि कोई दूसरे के करने की बात सोचता है तो मानना चाहिए कि वह भ्रम पालता है। इस भ्रम का टूटना जरूरी है। हां, संतजन इस कार्य में कुशल पथ-दर्शन कर सकते हैं। हमने अणुव्रत-आंदोलन के नाम से एक निषेधात्मक आंदोलन चला रखा है, जो जन-जन को बुराइयां छोड़ने का आह्वान करता है। बुराइयां छूटी कि अच्छाइयां स्वतः आ जाएंगी। गलत संस्कार छूटे कि .१०० - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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