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बहिरात्मा से अंतरात्मा की ओर कैसे मुड़ा जाए। इस बारे में हमारे त्यागीतपस्वी ऋषि-महर्षियों ने हमारा कुशल पथ-दर्शन किया है। उनकी अनुभवपूरित वाणी दिशासूचक यंत्र के तुल्य है। उसके दिशा-सूचन में व्यक्ति चलता रहे तो निश्चय ही वह एक दिन अंतरात्मा बन सकता है, पर यह अंतरात्मा तो बीच का पड़ाव है। चरम मंजिल तो परमात्मा बनना है। उसका मार्ग-दर्शन भी ऋषि-वाणी में हमें प्राप्त है। वह दिन किसी व्यक्ति के लिए परम सौभाग्य का होता है, जिस दिन वह परमात्म-पद प्राप्त करता है। ऋषि-वाणी के मार्ग-दर्शन में आप भी अपने चरण पूरी शक्ति के साथ इस दिशा में गतिशील करें, ताकि वह परम सौभाग्यशाली दिवस आप शीघ्रातिशीघ्र देख सकें।
कलकत्ता १४ मार्च १९५९
अर्थ के प्रति सम्यक दृष्टिकोण बने
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