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________________ ४० : अर्थ के प्रति सम्यक दृष्टिकोण बने कल प्रातःकालीन प्रवचन में मैंने आत्मा के तीन रूपों-बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा की चर्चा की थी। मैं देख रहा हूं कि आजकल सामाजिक, शैक्षणिक, राजनीतिक"""सभी क्षेत्रों में सर्वत्र पैसा जीवन का साध्य बन गया है। लोग जिस ढंग से उसकी प्राप्ति का प्रयत्न कर रहे हैं, उसे देखते हुए लगता है कि मानो वह उनका आराध्य हो, परमात्मा हो। मानव-समाज में जो यह मिथ्या दृष्टिकोण या मिथ्याचार व्याप्त हुआ है, यह बहिरात्मा का द्योतक है। आज समाज में जो अनेक प्रकार की विकृतियां पैदा हुई हैं, उसका यह मूलभूत कारण है। आवश्यकता इस बात की है कि लोगों का दृष्टिकोण परिमार्जित हो। अर्थ के प्रति उनकी सोच यथार्थवादी बने। वे उसे जीवन की आवश्यकतापूर्ति का साधन समझें। मिथ्या दृष्टिकोण को सम्यक बनाना बहिरात्मा से अंतरात्मा बनने की ओर मुड़ना है। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो शरीर को ही आत्मा समझते हैं। ऐसी समझ रखनेवाले व्यक्तियों के लिए कहना चाहिए कि वे एक बहुत बड़ी भ्रांति पाल रहे हैं। दूसरे शब्दों में वे एक मृगमरीचिका में फंसे हुए हैं। मेरी दृष्टि में शरीर को आत्मा मानना तथा पार्थिव पदार्थों में पूज्यत्व दृष्टि रखना कांच के टुकड़ों को रत्न मान लेने के समान भ्रांतिपूर्ण है। ऐसी भ्रांति पालनेवाले प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अपना बहुत बड़ा अहित करते हैं। जब तक व्यक्ति बहिरात्म-बुद्धि से छूटकर अंतरात्माभिमुख नहीं बन जाता, तब तक इस प्रकार की अनेक भ्रांतियां उसके संरक्षण में पलती रहती हैं। इसलिए व्यक्ति को चाहिए कि वह सलक्ष्य अंतरात्माभिमुख बनने का प्रयास करे। बहिरात्मा से अंतरात्माभिमुख बनने के पश्चात व्यक्ति की दृष्टि, सोच एवं आचरण में एक स्पष्ट परिवर्तन परिलक्षित होने लगता है। वह मन, वचन और शरीर-तीनों ही स्तरों पर दुष्प्रवृत्तियों से छूटकर सत्प्रवृत्तियों में संलग्न हो जाता है। प्रश्न किया जा सकता है कि .९८.-- - ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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