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________________ ३९ : आत्मा के तीन रूप आत्मा एक है, पर उसके रूप तीन हैं-बहिरात्मा, अंतरात्मा और परमात्मा। बहिरात्मा का स्वरूप क्या है? जीवन की समस्त बाह्य प्रवृत्तियां, बाह्य कार्य बहिरात्मा है। आत्मा का दूसरा रूप है-अंतरात्मा। जब कोई व्यक्ति सद्ज्ञान से उबुद्ध/प्रभावित हो बाह्य वातावरण से मुड़कर अंतर्मुखी बनता है, तब उसकी अंतरात्मा का रूप प्रकट होता है। अब रही परमात्म-रूप की बात। जब बहिरात्मा और अंतरात्मा का भेद मिट जाता है, तब परमात्म-रूप प्रकट होता है। इस रूप के उपलब्ध हो जाने के पश्चात व्यक्ति की मोह-ममता के सारे बंधन स्वतः छिन्न हो जाते हैं। आत्मा सर्वथा मुक्त बन जाती है। वैसे परमात्मा विदेह होते हैं, इसलिए उनका कोई आकार/रूप नहीं होता, परंतु ज्ञान, दर्शन और अनुभव से उसे पहचाना जाता है। मूल तत्त्व धर्म व्यक्ति को बहिरात्मा से अंतरात्मा तथा अंतरात्मा से परमात्मा बनाने की प्रक्रिया है। दूसरे शब्दों में वह मोक्ष का यात्रा-पथ है। उस पथ पर कदम-कदम चलकर व्यक्ति मोक्ष तक पहुंच सकता है। कुछ लोग ज्ञान को मोक्ष का साधन मानते हैं तो कुछ लोग भक्ति को। इसी प्रकार कुछ के मत में कर्म मोक्ष का साधन है। मेरी दृष्टि में ये सारे चिंतन सापेक्ष हैं। मूलभूत तत्त्व आत्मा है। उसके आधार पर ही आत्मवाद, अध्यात्मवाद, परमात्वाद-जैसे सिद्धांत बने हैं, अन्यथा इनका अस्तित्व ही क्या है? इसी प्रकार धर्म, धर्माचरण, भक्ति, मुक्ति आदि का अस्तित्व भी उसके अस्तित्व के साथ ही जुड़ा हुआ है। यह भी कितनी महत्त्वपूर्ण बात है कि नास्तिक मतावलंबियों को छोड़कर सभी दार्शनिक एवं सभी धर्मावलंबी इसका अस्तित्व एकमत से स्वीकार करते हैं, भले उसके स्वरूप के बारे में वे भिन्न-भिन्न मत रखते हैं, भले इसे समझने, ज्योति जले : मुक्ति मिले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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