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________________ कठिन हो, इसका साहस यकायक वह न कर पाए, पर उसे यदि सुख और शांति की आंतरिक अभीप्सा है तो कठिन होने के बावजूद उसे यह पथ स्वीकार करना होगा, यह साहस जुटाना होगा। इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प और मार्ग नहीं है, जिसे स्वीकार कर वह अपनी यह अभीप्सा पूरी कर सके। विसंगति मिटे ___मैं देख रहा हूं कि आज का मानव विसंगति-भरा जीवन जी रहा है। एक तरफ सुख-शांति की आकांक्षा करता है और दूसरी ओर संयम की बात भुलाकर भोगासक्ति में फंसा है, अर्थोपार्जन के पीछे पागल-सा बना हुआ है, येन केन प्रकारेण धन-संचय करने में लगा है। दूसरों का शोषण और उनके अधिकारों का हनन करने में भी उसे संकोच नहीं होता, आत्मग्लानि नहीं होती। उसे इस बारे में गंभीरता से चिंतन कर यह विसंगति मिटानी चाहिए। उसे यह समझना होगा कि भोग कभी सुख नहीं दे सकते। उनमें एक बार क्षणिक सुखाभास होता है, पर उसकी परिणति दुःख में होती है। इसी प्रकार अर्थ जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति का साधन मात्र है। इस सीमा तक उसकी उपयोगिता असंदिग्ध है, लेकिन वह सुख नहीं दे सकता, शांति की अनुभूति नहीं करा सकता, बल्कि बहुत सही तो यह है कि उसका अनावश्यक संग्रह व्यक्ति के लिए दुःख और अशांति का कारण बनता है। सुख और शांति के लिए तो, जैसाकि मैंने कहा, संयम एकमात्र मार्ग है, उपाय है, हेतु है। धर्म व्यक्ति-व्यक्ति को संयममय जीवन जीने की अभिप्रेरणा देता है। दूसरे शब्दों में वह जीवन-परिष्कार की प्रक्रिया है। प्राणिमात्र के प्रति आंतरिक मैत्री का भाव उसका साधन है। इसे व्यक्ति जब अपने व्यवहार में काम लेने लगता है, तब संयम की बात सहज रूप से सध जाती है। संयम सधा कि सुख और शांति का जीवन में स्वयं अवतरण हो जाता है। कलकत्ता १० मार्च १९५९ शांति और सुख का मार्ग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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