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३६ : शांति और सुख का मार्ग
मानव अशांत क्यों
आज सारा संसार अशांत है। मानव शांति की खोज कर रहा है, पर शांति उसे मिल नहीं रही है। क्यों? इस 'क्यों' का उत्तर अस्पष्ट नहीं है। शांति नहीं मिलने का कारण है असंयम। संयम के अभाव में उसका मिलना तो कहीं रहा, वह उससे और अधिक दूर हो रही है। यदि वास्तव में ही वह शांति प्राप्त करना चाहता है तो उसे उन्मार्ग का परित्याग कर सही मार्ग पर आना होगा, संयममय जीवन जीना होगा। अणुव्रत-आंदोलन का घोष ही है-संयमः खलु जीवनम्-संयम ही जीवन है। वह जीवन का प्रत्येक कार्य संयमपूर्वक करने का पाठ पढ़ाता है। आप पूछेगे कि संयम से आपका क्या तात्पर्य है। मन, वचन, शरीर की प्रवृत्तियों को सम्यक रूप से नियंत्रित करने का नाम संयम है। जब मन, वचन और काया की प्रवृत्तियों पर सम्यक रूप से नियंत्रण सध जाता है, तब आत्मा स्वयं नियंत्रित हो जाती है। मैंने एक गीत में कहा है
हाथ संयम पांव संयम खाद्य संयम आद्य हो। दृष्टि संयम वचन संयम आत्म-संयम साध्य हो। सब तरह सोचे-विचारें संयमः खलु जीवनम्॥ नियम से बोलें कि सारे संयमः खलु जीवनम्॥ प्रेम से बोलें कि प्यारे ! संयमः खलु जीवनम्॥
संयमः खलु जीवनम्॥ तात्पर्य यह कि जीवन की हर क्रिया संयमयुक्त होनी चाहिए। खाना, पीना, सोना, उठना, बैठना, खड़ा होना, चलना, बोलना, चिंतन करना "कोई भी क्रिया संयम से रहित नहीं होनी चाहिए। वैसे संयम का यह मार्ग अपनाना मानव के लिए सहज नहीं है, क्योंकि सामान्यतः वह सुकर कार्य करने का अभ्यासी होता है, दुष्कर कार्य करने का साहस झटपट नहीं जुटा पाता। भले संयम का मार्ग स्वीकार करना उसके लिए
- ज्योति जले : मुक्ति मिले
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