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आर्य : अनार्य
भारतीय समाज में आर्य और अनार्य की चर्चा प्रमुखता से होती रही है । हमारे सामने प्रश्न है कि आर्य कौन, अनार्य कौन, आर्य और अनार्य की भेद-रेखा क्या है। कुछ लोगों की ऐसी मान्यता है कि नागरिक सभ्यता के अंतर्गत रहनेवाले लोग आर्य हैं तथा नागरिक सभ्यता से दूर जंगल और पहाड़ों में रहनेवाले लोग अनार्य हैं। इस संदर्भ में मेरा चिंतन उपर्युक्त मान्यता से भिन्न है। मेरी दृष्टि में जिनका जीवन संयममय है, धार्मिकता से भावित है, वे आर्य हैं। इसके विपरीत जो लोग असंयम में रचे- पचे हैं, जिनका जीवन धर्म से शून्य है, वे अनार्य हैं। इस परिभाषा के अनुसार नागरिक सभ्यता से दूर अरण्य और पहाड़ों में रहनेवाले वे लोग भी आर्य हैं, जिनका जीवन धार्मिक है। इसके विपरीत सुंदर और बहुकीमती वस्त्राभूषणों में नागरिक - सभ्यता के अंतर्गत रहनेवाले वे लोग भी अनार्य हैं, जो असंयमी और अधार्मिक हैं। सारांश यह है कि आर्यत्व की वास्तविक कसौटी धार्मिकता है, क्षेत्र नहीं । इसलिए व्यक्ति-व्यक्ति अपनेआपको टटोले, अपने आचरण और व्यवहार की यथार्थपरक समीक्षा करे कि मेरे जीवन में धार्मिकता है या नहीं; मेरी मानवता जीवित है या नहीं । यदि ये तत्त्व हैं तो वह बेशक आर्य है, उसके शुभ का सूचक है। यदि नहीं हैं तो उसे आर्य कहलाने का वास्तविक अधिकार नहीं । आर्य बनने के लिए उसे अपने जीवन में बदलाव लाना होगा । उसे मानवीय मूल्यों के साथ जोड़ना होगा, धार्मिकता से संस्कारित करना होगा, सत्संस्कारों से पुष्ट करना होगा। आज समाज की जैसी स्थिति है, उसे देखते हुए ऐसा कहना अनुपयुक्त नहीं होगा कि बहुप्रतिशत लोग आर्यत्व से दूर हैं। उनका जीवन दुष्प्रवृत्तियों एवं अधार्मिकता से जकड़ा हुआ है। मानवता उनसे कोसों दूर चली गई है। इसका कारण भी अस्पष्ट नहीं है। लोगों की जीवन- दिशा गलत हो गई है। वे भोग-विलास को लक्ष्य मानकर चल रहे हैं। इस गलत
ज्योति जले : मुक्ति मिले
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३५ : आर्य कौन
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