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धर्मगुरुओं का दायित्व
मैं यह बात बहुत गहराई से अनुभव कर रहा हूं कि आज राष्ट्रीय चरित्र का तेजी से ह्रास हो रहा है। जो भारत किसी समय विश्वगुरु था, सारे संसार को धर्म और अध्यात्म का संदेश देता था, नीति और चरित्र की शिक्षा प्रदान करता था, वही आज स्वयं भ्रष्टाचार, अनैतिकता और अमानवीय प्रवृत्तियों में जकड़ा है। यह एक गंभीर स्थिति है, पर मेरी दृष्टि में इससे भी अधिक गंभीर स्थिति यह है कि राष्ट्र का नेतृ-वर्ग इसकी गंभीरता नहीं समझ रहा है। इसलिए इस स्थिति से उबरने की दिशा में कोई सार्थक प्रयत्न नहीं हो रहा है। कहा जाता है कि सम्राट अशोक की शासन-व्यवस्था में जनता के चारित्रिक विकास के लिए एक अलग से सुव्यवस्थित विभाग था, पर आज न तो केंद्रीय सरकार में और न किसी प्रांतीय सरकार में ऐसी व्यवस्था और विभाग दिखाई देता है। प्रश्न उभरता है कि ऐसी परिस्थिति में गिरता राष्ट्रीय चरित्र कैसे रुकेगा, जनता का नैतिक एवं चारित्रिक अभ्युदय कैसे होगा। मैं समझता हूं कि यह काम धर्मगुरुओं को करना चाहिए। उन्हें चाहिए कि वे अपने प्रभाव का उपयोग करते हुए अपने अपने अनुयायियों एवं संपर्क में आनेवाले लोगों के नैतिक एवं चारित्रिक विकास की दृष्टि से सलक्ष्य प्रयत्न करें। लोगों के जीवन में जो बुराइयां घर कर गई हैं, उन्हें निकालने का प्रयत्न करें। इससे राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में उल्लेखनीय सहयोग मिलेगा। अणुव्रत-आंदोलन
जन-जन के नैतिक पुनरुत्थान एवं चारित्रिक अभ्युदय के लिए हमने अपने स्तर पर एक कार्यक्रम शुरू किया है। अणुव्रत-आंदोलन के नाम से पहचाने जानेवाले इस कार्यक्रम में जाति, वर्ण, वर्ग, लिंग, संप्रदाय, भाषा, प्रांत आदि से संबद्ध किसी प्रकार की कोई संकीर्णता के लिए कोई स्थान नहीं है। जीवन-शुद्धि में विश्वास करनेवाला हरएक व्यक्ति बिना किसी भेद-भाव एवं रोक-टोक के इस कार्यक्रम के साथ जुड़ सकता है। सच्चा स्वागत
अणुबम की विध्वंसक शक्ति से आज संसार अपरिचित नहीं है। अणुबम जितना विध्वंसक है, अणुव्रत उतना ही निर्माणकारी है। वह
ज्योति जले : मुक्ति मिले
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