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३४ : राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो
कलकत्ता आने की प्रेरणा
आज कलकत्ता पहुंचकर मैं सात्त्विक प्रसन्नता की अनुभूति कर रहा हं। मेरी वर्षों की भावना एवं कल्पना आज साकार हुई है। कलकत्ता आने की प्रेरणा मुझे लगभग दस वर्ष पूर्व मिली। उस समय मैं दिल्ली में था। वहां अणुव्रत-आंदोलन का प्रथम अधिवेशन आयोजित हुआ। उस कार्यक्रम में पांच सौ से अधिक व्यापारियों ने भ्रष्टाचार, चोरबाजारी, मिलावट आदि न करने की प्रतिज्ञाएं ग्रहण की थीं। इस बात को लोगों ने आश्चर्य से देखा। अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका-टाइम (Time) तक ने यह संवाद प्रमुखता से प्रकाशित किया। देश के लगभग सभी प्रमुख पत्रों में तो यह समाचार प्रकाशित हुआ ही। अमृत बाजार पत्रिका ने मुझे कलकत्ता आने का आह्वान किया था। वैसे इसकी व्यवस्थित रूपरेखा तो गत चातुर्मास में सुजानगढ़ में ही बन पाई थी। राजस्थान से कलकत्ता तक की इस सुदीर्घ यात्रा में मुझे इस बात की बराबर अनुभूति होती रही कि भाषा, खान-पान, वेश-भूषा आदि की विविधता के बावजूद देश के लोगों में सांस्कृतिक ऐक्य है। शब्दांतर से कहूं तो राष्ट्रीय एकता के दर्शन मुझे यात्रा में बराबर होते रहे। कलकत्ता आने का उद्देश्य
कोई पूछ सकता है कि आप कलकत्ता क्यों आए हैं। इसके उत्तर में मैं बताना चाहता हूं कि मैं इस महानगर को देखने के उद्देश्य से नहीं आया हूं। यहां के लोगों से अर्थ-याचना करना भी मेरे यहां आने का उद्देश्य नहीं है। मेरे यहां आने का उद्देश्य है-यहां के लोगों के जीवन में व्याप्त बुराइयों/दुष्प्रवृत्तियों/कुसंस्कारों की भिक्षा प्राप्त करना, ताकि जन-जीवन स्वस्थ बन सके। राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण हो
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