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________________ न होने की बात दोहराता। इस स्थिति ने द्रोणाचार्य को इतना कुपित कर दिया कि एक दिन उन्होंने युधिष्ठिर के गाल पर कसकर दो चांटे जड़ दिए। चांटे लगते ही युधिष्ठिर बोल पड़ा-गुरुदेव ! मुझे पाठ याद हो गया है।' और सचमुच उसने पाठ सुना भी दिया। गुरु द्रोणाचार्य ने कहा-'यदि मुझे ऐसा पता होता कि चांटे लगने से पाठ याद होता है तो मैं इतने दिन का समय व्यर्थ क्यों गंवाता! पहले दिन ही यह प्रयोग कर लेता।' लेकिन तुरंत ही वे गंभीर हो गए। उनके मन में चिंतन आया कि युधिष्ठिर एक प्रखर बुद्धिवाला छात्र है। उसे तीन शब्दों का छोटा-सा वाक्य-क्रोधं मा कुरु इतने दिनों तक याद न हो, यह कैसे संभव है। फिर एक बात और है। चांटे लगने के पूर्व क्षण तक यह पाठ याद न होने की बात कह रहा था, पर चांटे लगते ही इसे पाठ याद हो गया, इस बात में कोई गूढ़ रहस्य है। मुझे वह रहस्य जानना चाहिए। इस चिंतन के साथ उन्होंने संकेत से युधिष्ठिर को अपने समीप बुलाया और अत्यंत स्नेहवत्सलतापूर्वक इस संदर्भ में पूछा। युधिष्ठिर बोला-'गुरुदेव! आपने ही तो हमें बताया था कि जो पढ़ो उसे अपने आचरण और व्यवहार में उतारो, अन्यथा पढ़ने की कोई विशेष सार्थकता नहीं है। क्रोधं मा कुरुयह वाक्य तो मैंने प्रथम दिन ही याद कर लिया था, पर इसका भाव जीवनगत और आचरणगत नहीं बना था। मुझे गुस्सा बहुत आता था। ऐसी स्थिति में यदि मैं पाठ याद होने की बात कहता तो क्या वह अयथार्थ नहीं हो जाती? इसलिए मैंने पाठ याद न होने की बात कही और साथ ही गुस्सा न करने का प्रयास करना शुरू कर दिया। कुछ दिनों के अभ्यास से मैं एक भूमिका तक तो पहुंच गया था। कोई मेरे साथ गलत व्यवहार करता, अपशब्द बोलता, तथापि मुझे गुस्सा नहीं आता, किंतु कोई मुझे पीटे, फिर भी गुस्सा न आए, इस बात की परख होनी अभी शेष थी। आज से पूर्व ऐसा कोई प्रसंग बना नहीं। आज आपका अनुग्रह हुआ और मैं इस कसौटी पर स्वयं को कस सका। चांटे लगने के बाद भी मेरे मन में जब गुस्से का तनिक भी भाव नहीं उभरा, तब मैं इस बात के लिए आश्वस्त हो गया कि पढ़ा हुआ पाठ जीवनगत हो गया है। इस आश्वस्ति के साथ ही मैंने आपसे पाठ याद हो जाने की बात कही और पाठ सुना भी दिया। गुरुदेव ! इतने दिन मेरे कारण आपको काफी कष्ट हुआ, इसके लिए पुनः-पुनः क्षमाप्रार्थी हूं।' और वह विद्याध्ययन क्यों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003113
Book TitleJyoti Jale Mukti Mile
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2005
Total Pages404
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size13 MB
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